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कविरत्न स्व० सत्यनारायण
सन् १९१० को बात है,गर्मी का मौसम था, कविरत्न पं० सत्यनारायण जी अपने अलीगढ़ निवासी साहित्य-प्रेमी मित्र स्व० छेदालाल शर्मा के साथ, मेरे पिता पं० नाथूराम शकर शर्मा से मिलने हरदुआगज पहुँचे। हरदुआगज अलीगढ से सात मील दूर पक्की सड़क पर है । पिताजी प० सत्यनारायणजी की कविताएँ पढ चुके थे। वे उनसे मिलकर बहुत प्रसन्न हुए । कविरत्नजी ने मधुर स्वर से अपनी कुछ कविताएँ भी सुनाई, सुनकर अनेक श्रोता एकत्र हो गये, पिताजी ने भी अपनी कविताएँ सुनाई। मै उस समय १७-१८ वर्ष का नवयुवक था। पिताजी के प्रेम पूर्ण आग्रह से कविरत्न जी और उनके साथी सज्जन ने भोजन भी हमारे घर पर ही किया । तीन-चार घंटे हरदुआगज ठहर कर उपर्युक्त दोनों महानुभाव अलीगढ वापस चले गये।
सन् १९१३ ई० मे, कविरत्नजी से आगरा में मेरी फिर मुलाकात हुई। उन दिनो पण्डित लक्ष्मीधर वाजपेयी 'आर्यमित्र' के सम्पादक थे । मै उन्ही के यहाँ ठहरा था । शाम को नित्य १० बदरीनाथ भट्ट, पं० श्री कृष्णदत्त पालीवाल, पं० ठाकुरदत्त शर्मा (भूतपूर्व एकजीक्यूटिव आफिसर, बनारस नगरपालिका), अध्यापक रामरत्नजी, पं० सत्यनारायणजी कविरत्न, आदि वाजपेयीजी के कार्यालय (बागमुजफ्फरः खाँ महल्ला) में एकत्र हो साहित्य-चर्चा किया करते थे । वहाँ इन सब सज्जनों से अनायास ही मेरी मुलाकात हो गयी। 'ये शंकरजी के पुत्र हैं' यह कहकर वाजपेयीजी सब साहित्यिको से मेरा परिचय कराते थे। फिर तो मैं अनेक बार आगरा आया। ठहरा तो अन्य कृपालुओं के यहाँ, परन्तु वाजपेयीजी के यहाँ साहित्यिक सज्जनों से अवश्य मिला । इस प्रकार कविरलजी तथा अन्य महानुभावो से मेरा पर्याप्त परिचय हो गया था।