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हिन्दु-समाज । ऋषि की यह हार्दिक अभिलाषा थी कि सम्पूर्ण भारतवामी अपने हिन्दुपन तथा विधर्मियों की ओर से बलात् आरोपित किये हुए गर्हित हिन्दू नाम को छोड़ कर, जीवन, ज्योति, उत्साह और पवित्रता के द्योतक "आर्य” नाम को ही अपनावें । इमी लिए ऋषि ने हिन्दू नाम प्रिय हिन्दुओं को भी कभी हिन्दू कह कर नहीं पुकाग । उन्होंने अपने ग्रन्थों में भी सब जगह भारतीयों को आर्य ही लिखा है। इस देश को "आर्यावर्त" तथा जाति को "आर्य-जाति" के नाम से पुकारा है। हिन्दूजाति या हिन्दुस्तान के नाम से नहीं । ऋपि मत्यार्थप्रकाश के दशम समुल्लास में लिखते हैं:___“विदेशियों के आर्यावर्त में गजा होने के कारण, आपम की फूट, मतभेद, ब्रह्मचर्य का संवन न करना, विद्या का न पढ़ना वा बाल्यावस्था में विवाह, विषयासक्ति, मिथ्या-भापण
आदि कुलक्षण, वेद विद्या का अप्रचार आदि कुकर्म हैं..... । न जाने यह भयंकर राक्षस कभी छूटेगा या पार्यों को सब सुखों में छुड़ा, दुःख-सागर में डुबा मारेगा। उसी दुष्ट दुर्योवन गोत्र-हत्यारे, स्वदेश विनाशक, नीच के दुष्ट मार्ग में आये लोग अब भी चल कर दुःख उठा रहे हैं । परमेश्वर कृपा करें कि यह राज-रोग हम पार्यों में से नष्ट हो जाय ।" ____ इसी प्रकार अन्य भी कई स्थानो पर ऋषि ने भारतीयों को आर्य नाम से पुकारा है । किन्तु खेद है कि हम ऋषि के अनुयायी हिन्दुओं को श्रायं कहना तो अलग रहा अपने को भी हिन्दू कहने लग पड़े हैं । ऋषि ने अपने जीवन-काल में एक