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________________ अपितु दर्पण है । साधना-जगत् का चप्पा-चप्पा छानने के बाद महावीर ने जो पगडंडी वताई, वही आठ अध्यायों के रूप में सीधे-सादे ढङ्ग से प्रस्तुत है । इसके छोटेछोटे सूव/सूक्त महावीर को नव्य ऋचाएं हैं। इनकी उपादेयता कदम-कदम पर अचक है। महावीर के इन अभिभापरणों में कहीं-कहीं काव्यात्मक धड़कन भी सुनाई देती है। यदि इन सूत्रों से घुलमिलकर बात की जाये, तो इनके पेट की अर्थगहराइयाँ उगलवाई जा सकती हैं। महावीर ने 'पायार-सुत्त' में धमरण-आचार का जर्रा-जर्रा सामने रख दिया है । सचमुच, यह महावीर के प्राचारगत मापदण्डों का अद्भुत स्मारक है । इसका पहला अध्ययन 'जियो और जीने दो' के सांस्कृतिक वोधवाक्य को आँखों की रोशनी बनाकर स्वस्तिकर जीवन जीने की प्रेरणा देता है। दूसरा अध्ययन अन्तर-व्यक्तित्व में अध्यात्म-क्रान्ति का अभियान चालू रखने के लिए खुलकर बोलता है। तीसरा अध्ययन जय-पराजय जैसे उठापटक करने वाले परिवेश में स्वयं को तटस्थ बनाए रखने की सीख देता हुआ साधक को न्याय-तुला थमाता है। चौथा अध्ययन सोये मानव पर पानी छिटककर उसकी हंस-दृष्टि को उघाड़ते हुए आत्म-अनात्म के दूध-पानी में भेद करने का विज्ञान आविष्कृत करता है। पांचवां अध्ययन विश्व में सम्भावित हर तत्त्व-ज्ञान को खूब मथकर निकाला गया नवनीत है, जो प्रात्मा के मुखड़े को निखारने के लिए सौन्दर्य-प्रसाधन है। छटा अध्ययन जीवन की मली-कुचेली चादर को अध्यात्म के घाट पर रगड़रगड़ कर धुनने धोने की कला सिखाता है। सातवां अध्ययन काल-कन्दरा में चिर समाधिस्थ है। आठवां अध्ययन संसार की सांझ एवं निर्वाण की मुबह का स्वणिम दृश्य दरशाता है। नौवां अध्ययन महावीर के महाजीवन का मधुर संगान है। 'पायार-मुत्त' मेरे जीवन को प्रसन्नता और सम्पन्नता है। मुझे इससे बहुत प्रेम है । जैसा मैंने उसको अपने ढङ्ग से समझा है, उसे उमी रूप में डाल दिया है। पूर्वाग्रह के प्रस्तरों को हटाकर यदि इसे स्वयं के प्रारणों में अनवरत उतरने दिया गया, तो यह प्रयान मुमुक्षु पाठक को अमृत स्नान कराने में इंकलाव की प्राशा है। उदयपुर, १४-११-८६ -चन्द्रप्रभ
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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