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________________ १३६. वही मैं कहता हूँ कुछ अर्चना [ देह-प्रलंकरण/मन्त्र-सिद्धि/यज्ञ-याग ] के लिए वध करते हैं, कुछ चर्म के लिए वध करते हैं। कुछ मांस के लिए वध करते हैं, कुछ रक्त के लिए वध करते हैं । कुछ हृदय/कलेजे के लिए वध करते हैं, कुछ पित्त के लिए वध करते हैं। कुछ चर्वी के लिए वध करते हैं, कुछ पंख के लिए वध करते हैं । कुछ पूंछ के लिए वध करते हैं, कुछ वाल के लिए वध करते हैं । कुछ सींग के लिए वध करते है, कुछ विषाण/हस्तिदंत के लिए वध करते हैं। कुछ दांत के लिए वध करते हैं, कुछ दाढ़ के लिए वव करते हैं । कुछ नख के लिए वध करते हैं. कुछ स्नायु के लिए वव करते हैं। कुछ अस्थि के लिए वध करते हैं, कुछ अस्थिमज्जा के लिए वध करते हैं । कुछ प्रयोजन से वव करते हैं, कुछ निप्प्रयोजन वध करते हैं । या कुछ 'मुझे मारा' इसलिए वध करते हैं, या कुछ 'मुझे मारते हैं। इसलिए वध करते हैं, या कुछ 'मुझे मारेंगे' इसलिए वध करते हैं। १३७. शस्त्र-समारम्भ करने वाले के लिए यह त्रसकायिक वध-बंधन अज्ञात है। १३८. शस्त्र समारम्म न करने वाले के लिए यह त्रसकायिक वध-वंधन ज्ञात है । १३६. उस सकायिक हिंसा को जानकर मेघावी न तो स्वयं त्रस-शस्त्र का उपयोग करता है, न ही प्रस-शस्त्र का उपयोग करवाता है और न ही प्रस-शस्त्र के उपयोग करने वाले का समर्थन करता है। १४०. जिसके लिए ये अस-कर्म की क्रियाएं परिज्ञात हैं, वही परिज्ञात-कर्मी [हिंसा-त्यागी ] मुनि है। . ऐसा मैं कहता हूँ। शस्त्र-परिज्ञा
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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