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१६६. से वैमि
अप्पेगे अच्चाए वहंति, अप्पेगे अजिणाए वहंति,
अप्पेगे मंसाए वहति, अप्पेगे सोणियाए वहंति, अप्पेगे हिययाए वहंति, अप्पेगे पित्ताए वहंति, अप्पेगे वसाए वहंति, अप्पेगे पिच्छाए वहंति, अप्पेगे पुच्छाए वहंति, अप्पेगे वालाए वहंति, अप्पेगे सिंगाए वहंति, अप्पेगे विताणाए व्हंति, अप्पेगे दंताए वहंति, अप्पेगे दाढाए वहंति. अप्पेगे णहाए वहंति, अप्पेगे व्हारणीए वहंति, अप्पगे अट्ठोए वहंति, अप्पेगै अट्टिमिजाए वहंति, अप्पेगे अट्ठाए वहति, अप्पेगे अणट्ठाए वहति, अप्पेगे हिसिसु मेत्ति वा वहंति, अप्पेगे हितंति मेत्ति वा वहंति, अप्पेगे हिसित्संति मेत्ति वा वहंति,
१३७. एत्य सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेए प्रारंभा अपरिग्णाया भवंति ।
१३८. एत्य सत्यं असमारंभमाणस इच्चेए प्रारंभा परिणाया भवंति ।
१३६. तं परिष्णाय मेहावी व सयं तसकाय-तत्थं समारंभेज्जा, गेवणेहि तसकाय
सत्यं समारंभावेज्जा, णेवणे तसकाय-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा ।
१४०. जस्सेए तसकाय-सत्थ-समारंभा परिणाया भवंति, ने हुमुणी परिणायकम्मे ।
-त्ति बेमि ।