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६५. जो अग्नि-गस्त्र को जानने वाला है, वह अणस्त्र/अहिंसा को जानने वाला
है। जो अहिंसा को जानने वाला है, वह अग्नि-शस्त्र को जानने वाला है।
६६. संयमी, अप्रमत, यमी, वीर-पुरुषों ने इस अग्नि-तत्त्व को सदैव साक्षात्
देखा है।
६७. जो प्रमत्त एवं अग्नि-गुणों का अर्थी है, वही हिंसक कहलाता है।
६८. यह जानकर मेधावी पुरुप सोचे कि जो मैंने पहले प्रमादवश किया, वह अब
नहीं करूंगा।
६९. तू उन्हें पृथक-पृथक लज्जमान हीनभावयुक्त देख।
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७०. ऐसे कितने ही भिक्षुक स्वाभिमानपूर्वक कहते हैं - 'हम अनगार हैं।' ७१. जो नाना प्रकार के शस्त्रों द्वारा अग्नि-कर्म की क्रिया में संलग्न होकर
अग्निकायिक जीवों की अनेक प्रकार से हिंसा करते हैं ।
७२. निश्चय ही, इस विपय में भगवान् ने प्रज्ञापूर्वक समझाया है ।
और इस जीवन के लिए प्रशंसा, सम्मान एवं पूजा के लिए, जन्म, मरण एवं मुक्ति के लिए दुःखों से छूटने के लिए [ प्राणी कर्म-वन्धन की प्रवृत्ति करता है । ]
७४. वह स्वयं ही अग्नि-शस्त्र का प्रयोग करता है, दूसरों से अग्नि-शस्त्र का
प्रयोग करवाता है और अग्नि-शस्त्र के प्रयोग करनेवाले का समर्थन करता है।
७५. वह हिंसा अहित के लिए है और वही अबोधि के लिए है।
७६. वह साधु उस हिंसा को जानता हुआ ग्राह्य-मार्ग पर उपस्थित होता है ।
शस्त्र-परिज्ञा