________________
पर्यावरण का अस्तित्व स्वस्थ एवं संतुलित रहे, इसके लिए साधक का जागृत और समर्पित रहना साध्य की ओर चार कदम बढ़ाना है। दूसरों का छेदन-भेदन हनन न करके अपनी कपायों को जर्जरित कर हिंसा मुक्त प्राचरण करना साधक का धर्म है । इसलिए ग्रहिंसक व्यक्ति पर्यावरण का सजग प्रहरी है ।
पर्यावरण अस्तित्व का अपर नाम है । प्रकृति उसका अभिन्न अङ्ग है । उस पर मँडराने वाले खतरे के वादल हमारे ऊपर विजली का कौंधना है । इसलिए उसका पल्लवन या भंगुरण समग्र अस्तित्व को प्रभावित करता है ।
हमारे कार्यकलापों का परिसर बहुत बढ़ चढ़ गया है। उसकी सीमाएँ अन्तरिक्ष तक विस्तार पा चुकी हैं। मिट्टी, खनिज पदार्थ, जल, ज्वलनशील पदार्थ, चायु, वनस्पति प्रादि हमारे जीवन की आवश्यकताएँ हैं । किन्तु इनका छेदनभेदन-हनन इतना अधिक किया जा रहा है कि दुनिया से जीवित प्राणियों की अनेक जातियों का व्यापक पैमाने पर लोप हुआ है । प्रदूपरण- विस्तार के कारणों में यह भी मुख्य कारण है ।
महावीर ने पृथ्वी के सारे तत्त्वों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया । उन्होंने अपने शिष्यों को स्पष्ट निर्देश दिया कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, जीवजन्तु, मनुष्य आदि पर्यावरण के किसी भी अङ्ग को न नष्ट करे, न किसी और से नष्ट करवाये और न हो नष्ट करने वाले का समर्थन करे । वह संयम में पराक्रम करे । उनके अनुसार जो पर्यावरण का विनाश करता है, वह हिंसक है। महावीर हिंसा को कतई पसन्द नहीं करते। उन्होंने सङ्घर्षमुक्त समत्वनियोजित स्वस्थ पर्यावरण वनाने को शिक्षा दो ।
प्रदूपरण-जैसी दुर्घटना से बचने के लिए पेड़-पौधों एवं पशु-पक्षियों की रक्षा अनिवार्य है। इसी प्रकार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु आदि के प्रदूपरणों से दूर रहने के लिए प्रतित्व रक्षा / ग्रहमा परिहार्य है |
प्रकृति, पर्यावरण और समाज सभी एक-दूसरे के लिए हैं। इनके अस्तित्व को बनाये रखने के लिए महावीर-वारणी क्रान्तिकारी पहल है । प्रस्तुत अध्याय ग्रहिंसक जीवन जीने का पाठ पढ़ाता है ।