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________________ नानानानानानानानानानानानानारामा F FIFIEIFIFIEIFIFIFIFIEDEI आचार्य श्री कुंद-कुंद क्रमिक विकास के सर्वमान्य सिद्धान्त के प्रबल हामी (समर्थक) थे। पात्रों की योग्यता की तरतमता को उन्होंने कभी नहीं नकारा। यह उनके सभी ग्रंथों से प्रमाणित होता है। शुद्ध निश्चय नय के साम्राज्य में वे किन्हीं भी विकल्पों की द्वैतवाद को स्वीकार नहीं करते। इन विकल्पों की कोई गुंजाइश वहां नहीं। इस अभिप्राय या सिद्धान्त का पोषण करते हुए आचार्य अमृतचन्द्र के निम्न क्लश को प्रमाण के रूप में उद्धृत किया है। ___ उदयति न नयश्रीरस्त मेति प्रमाणं क्वचिदपि न विमो याति निक्षेपचक्रम्। किमपर भमिदध्मो धाम्नि सर्वप्रकस्मिन्ननुभव मुपयाते भाति न द्वैतमेव।। अर्थात् एक अवस्था ऐसी आती हैं जहां व्यवहार और निश्चय दोनों नयों का अस्तित्व नहीं रहता। प्रमाण अस्त हो जाता है और निक्षेप का तो पता नहीं चलता कि वह कहां गया। उपयुक्त अविकल विवेचन से यह तथ्य सामने आता है कि आचार्य श्री कुंद-कुंद समन्वय वाद सापेक्षवाद के प्रतिपादक थे। सर्वज्ञ प्ररूपित वस्तु तत्व के निर्विरोध विश्लेषण का यही तरीका है। इस प्रकार यह धारणा निर्विवाद और निसंदेह है कि श्री स्वामी दार्शनिक, सैद्धान्तिक और चारित्रात्मक आत्म कल्याण के सभी क्षेत्रों में समन्वयवाद के आधार पर अप्रतिम आचार्य थे। संदर्भ ग्रंथ 1. आचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर 12. जैन साहित्य और इतिहास 3. जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह (पं. परमानंद शास्त्री) 4. भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचंद्र जयपुर डा० कस्तूरचंद कासलीवाल प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ $575455 95
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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