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________________ 5555555555555555555555 से रहित हैं संसार सागर से कभी पार नहीं हो सकते। रागादि की उत्पत्ति में पर द्रव्य निमित्त कारण हैं और स्वद्रव्य उपादान कारण हैं। इसी अधिकार में मोक्ष मार्ग से लिंग को प्रधानमान मुनिलिंग या गृहस्थ के विविध लिंगों को भी TE कारण मानकर विवाद में पड़ने वाले लोगों को श्री कुंद-कुंदचार्य कहते हैं - कि कोई लिंग मोक्ष का कारण नहीं है। मोक्ष का मार्ग तो सम्यक् दर्शन और 'सम्यक् चारित्र व आत्मा की सर्वकर्मों से रहित अवस्था मोक्ष है। मोक्ष मार्ग के प्रकरण में श्री कंद-कुंद स्वामी ने बड़ी महत्व की बात कही है। वह उत्कृष्ट बात है सम्यक चारित्र। वे कहते हैं कि मोक्ष मार्ग विषयक तेरा श्रदान और ज्ञान तुझे कर्म बंध से मुक्त कराने वाला नहीं है। मुक्त कराने वाला तो यथार्थ 7 श्रदान और ज्ञान के साथ होने वाला चारित्र पुरुषार्थ ही है। इसके बिना बंधनमुक्त होना दुर्लभ है। मात्र श्रद्धान और ज्ञान को लिये हुए तेरा सागरों Pा पर्यन्त काल यों ही निकल जाता है, परन्तु बंधन से मुक्त नहीं होता। स्वपर 45 भेद विज्ञानपूर्वक जो चारित्र धारण किया जाता है वही मोक्ष प्राप्ति का - वास्तविक पुरुषार्थ है। चारित्तं खलु धम्मो, धम्मो जोसो समोत्ति णिधिट्ठो। मोहक्खोह विहीणो परिणामो अप्पणोंही समो।। __ मोक्ष प्राप्ति के लिये यद्यपि वे किसी लिंग विशेष को आवश्यक नहीं मानते प्रत्युत ऐसे पाखंडी लोगों को जो गृहस्थ या मुनि लिंग विशेष में ममता रखते हैं उन्हें परमार्थ से समयसार के ज्ञान से रहित मानते हैं, किन्तु यह इस पक्ष (निश्चय) की एकान्तता और मोक्ष प्राप्ति में गृहस्थाचार तथा महाव्रती के चारित्र के बहिष्कार एवं उपेक्षित होने की आशंका से सचेत होकर मोक्ष की प्राप्ति में व्यवहार नय से गहस्थ लिंग और मनि लिंग दोनों की उपयोगिता स्वीकार करते हैं। ववहारिओ पूण णओ दोपणीव लिंगाणि मणइमोकखपहे। पिच्छय णओं ण इच्छई मोक्खपहे सब्द लिंगाणि।। अर्थात् व्यवहार नय मुनिलिंग और गृहस्थ लिंग दोनों को मोक्ष मार्ग कहता है। और निश्चय सभी लिंगों को मोक्ष प्राप्ति हेतु आवश्यक नहीं मानता। 51 मोक्ष मार्ग से लिंग को प्रधान मान मुनि लिंग या गृहस्थ लिंग के विविध लिंगों LF को कारण मानकर विवाद में पड़ने वाले लोगों को श्री कुंद-कुंद आचार्य कहते हैं कि कोई लिंग मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष का मार्ग तो सम्यक दर्शन और सम्यक चारित्र है। 545454545454545454545454545454545454545 1470 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - HEARSHA - - 1 -1 -1 -1
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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