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ने अपने गोम्मटसार नामक ग्रन्थ की रचना की है। इसी से इस ग्रन्थ को 'गोम्मटसार' की संज्ञा दी गई है। अतएव यह स्पष्ट है कि गंगनरेश राजमल्लदेव के प्रधान सचिव और सेनापति चामुण्डराय का आचार्य नेमिचन्द्र के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है।"।
(तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भा. 2 पृ. 421) श्रीबाहुबलि की प्रतिष्ठा के विषय में एक उद्धरण, स्तोत्र के अन्तर्गत उपलब्ध होता है वह इस प्रकार है :
कलक्यब्दे षट्शताख्ये विनुतविभवसंवत्सरे मासि चैत्रे. - पंचम्पांशुक्लपक्षे दिनमाणिदिवसे कुम्भलग्ने सुयोगे। 'सौभाग्ये हस्तनाम्नि प्रकटितभगणे सुप्रशस्तां चकार।
सौभाग्ये हस्तनामि प्रकटितमगणे सुन्प्रशस्तां चकार, श्रीमच्चामुण्डराजो वेल्गुलनगरे गोम्मटेश प्रतिष्ठाम् ।।
सारांश-कल्किसं (कलि सं.. शक सं.) 600 में, विभवसम्वत्सर में, चैत्र TE शुक्ला पंचमी, रविवार को कुम्भलग्न, सौभाग्ययोग, मृगशिरानक्षत्र
श्रीचामुण्डराय ने वेल्गुलनगर (श्रवण वेल्गोल) नगर में प्रशस्त गोम्मटेश्वरमूर्ति
की प्रतिष्ठा को सम्पन्न कराया। 96 हजार दीनार (32 रत्तीसुवर्ण सिक्का) का TE ग्राम मूर्ति के पूजन सुरक्षा हेतु प्रदान किया।
(श्रीबाहुबलि स्तुति, श्लोक 8) (गो. जी. का प्रस्तावना पृ. 13 4 खूबचन्द्रजैन कृत. सन् 1916)।
गोम्मटसारग्रन्थ की रचना चामुण्डराय के निमित्त से हुई है। इस विषय के उल्लेख अनेक स्थानों पर प्राप्त होते हैं।
गोम्मटसार की श्रीचामुण्डरायकृत एक कर्नाटक वत्ति. ग्रन्थकर्ता श्री नेमिचन्द्र जी सि. च. के समक्ष ही पूर्ण बन चुकी थी। उसी के अनुसार श्रीकेशववर्णीकृत एक संस्कृत टीका भी है। उसकी उत्थानिका में एक संस्कृतगद्य का उल्लेख है वह इस प्रकार है
"श्रीमदप्रतिहत प्रभावस्याद्वाद शासन गहाभ्यन्तरनिवासिप्रवादिसिन्धुरसिंहायमान सिंहनन्दि नन्दित गंगवंशललाम-राजसर्वज्ञाद्यनेक गुणनामधेय-श्रीमद्राजमल्लदेव- महीवल्लभमहामात्मपदविराजमान--
रणरंगमल्लासहायपराक्रमगुणरत्नभूषणसम्यक्त्वरत्ननिलयादिविविधगुण 2 नामसमासादित कीर्तिकान्त- श्रीमच्चामुण्डरायप्रश्नावतीर्ण कचप्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
400 पाााा .
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