SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 45454545454545454545454545454545 गोम्मटसार के प्रणेता सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य : एक अध्ययन समीचीन ज्ञान की करणानुयोगपद्धति से प्रणीत महान् गम्भीर ग्रन्थ गोम्मटसार के नाम सुनने से एवं उसके अध्ययन करने से यह जिज्ञासा स्वाभाविक रूप से हो जाती है कि इस ग्रन्थ के रचयिता कौन से आचार्य हैं? कारण कि कृतित्व से व्यक्तित्व का अनुमान होता है और व्यक्तित्व की प्रमाणता से कृतित्व में प्रमाणता सिद्ध होती है। नीति यह है वक्ता की प्रमाणता से वचनों में प्रमाणता सिद्ध होती है।' 'गोम्मटसार' इस पवित्र नामकरण से ही इष्टदेव, गुरु एवं शिष्य के निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध का निश्चय हो जाता है। श्रीनेमिचन्द्राचार्य श्री गोम्मटदेव के परमभक्त थे, तथा गोम्मटराजा (चामुण्डराय) श्रीनेमिचन्द्र के परमशिष्य थे। नेमिचन्द्राचार्य के शुभ आदेश से, प्रविऽदेशीय प्रतापी राजा चामुण्डराय ने बाहुबलि स्वामी की उत्तुंग रम्य मूर्ति का निर्माण कराया और उसकी प्रतिष्ठा कराने का प्रयत्न किया। इस प्रतिष्ठा में सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य प्रतिष्ठाचार्य ने प्रतिष्ठा का कार्य सम्पन्न कराया। ज्ञानपिपासु गोम्मटराजा ने अपने गुरुवर्य से श्रेष्ठ धर्मोपदेश देने की - प्रार्थना की। प्रार्थना पर ध्यान देकर नेमिचन्द्राचार्य ने गोम्मटसार ग्रन्थ का प्रणयन किया। अतः उपर्युक्त कारणों से इस ग्रन्थ का नाम गोम्मटसार निश्चित किया। चामुण्डराय का जन्मकालिक नाम 'गोम्मट' रखा गया था। राज्यपद प्राप्त करने परं 'गोम्मटराय' इस नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस विषय में डा. ए. एन. उपाध्ये के विचार स्वरचित लेख में इस प्रकार है "चामुण्डराय का घरूनाम गोम्मट था। उनके इस नाम के कारण ही । उनके द्वारा स्थापित बाहुबलि की मूर्ति गोम्मटेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुई। 45 डा. उपाध्ये के अनुसार गोम्मटेश्वर का अर्थ है, चामुण्डराय का देवता। इसी कारण विन्ध्यगिरि जिस पर गोम्मटेश्वर की मूर्ति स्थित है, वह भी गोम्मट, 51 गिरि कहा गया। इसी गोम्मट उपनामधारी चामुण्डराय के लिये नेमिचन्द्राचार्य 3991 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ नाााा -TE
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy