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________________ । क्या अजैन भी जहाँ मुखारविन्द से निःसृत दो शब्द सुनने को लालायित रहते हैं। निश्छल, सौम्य, मन्द मुस्कुराहट युक्त मुखमुद्रा, दिगम्बरवेश देखते नहीं कि श्रद्धानत हो जाते हैं। कह उठते हैं-"वर्तमान युग के साधु हैं सभी प्रकार से सभी समस्याओं को सामधान देने में सक्षम हैं, विरोधों को भी सामंजस्य में व प्रतिकूलता को भी अनुकूल बनाने में समर्थ हैं। सभी के प्रति वत्सलभाव है। सन् १९६१ में आपका प्रथम चातुर्मास गया में हुआ। गया में उपाध्याय श्री के सानिध्य में भव्य समारोह हुआ। उपाध्याय श्री विद्वानों, साहित्य-सेवियों एवं शोधार्थियों से सहज स्नेह रखते ही हैं। विद्वानों से अधिक से अधिक सम्पर्क रखना चाहते हैं। विद्वानों का समागम होता रहे अतः वे श्रावकों को संगोष्ठियां करने की प्रेरणा दिया ही करते हैं। वे कहते हैं विद्वान समाज की निधि है। इसलिए उनका संरक्षण, सम्मान एवं आतिथ्य ही जिनवाणी का संरक्षण एवं सम्मान है। बिहार में रांची से लगभग अस्सी किमी. दूर तड़ाई ग्राम में विराट सराक समेलन में लाखों सराकों को जैन धर्म की मूलधारा में लाने और उनके उत्थान के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन एवं भारतवर्षीय दिगम्बर जैन समाज के शीर्ष नेता साहू अशोक जैन के द्वारा सराकोत्थान ट्रस्ट की स्थापना, धर्मप्रभावक, संस्कृति-संरक्षण जैसे महान प्रभावी कार्य आपके चरणसानिध्य में हुए। जबाडीह, देवलदांड, अगसिया एवं रंगमाटी को अपनी वीतरागी मुद्रा एवं प्रभावी वाणी से पवित्र किया। सराक बन्धुओं के मध्य वर्षायोग की स्थापना कर सच्ची साधना का परिचय, दिगम्बरत्व मुद्रा का महत्त्व बिहार तो बिहार बंगाल और उड़ीसा को मिला। क्षुल्लक अवस्था में सन् 1984 में मुंगावली में संगोष्ठी खनियाधाना 1 में सेमिनार आयोजित हुआ जिसमें बहुत से विद्वानों ने भाग लिया। सराकों 1 को उनका अतीत का गौरव स्मरण कराया, उस प्रतिकूल क्षेत्र में जैनत्व का बिखरा पुरातत्व एवं सराकों के अन्तरंग में निहित श्रावकत्व को संरक्षित, - संपोषित करने का महनीय कार्य कर इस ओर पूरे भारत का ध्यान आकर्षित 3 किया। लोकेषणा, ख्यातिलाभ के प्रचार-प्रसार से निःस्पृह पूज्य उपाध्याय श्री LE की यही अलौकिक साधना, परदुःख कातरता, असीम करुणा, अपूर्व त्याग सम्पूर्ण बिहार प्रान्त में चर्चा का विषय बन गई। वहाँ के युवाओं जैन-जैनेतरों 11 में धार्मिक संस्कार को जागृत करना असंभव नहीं तो कठिन कार्य अवश्य 151 । 15329 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 55154545454545454545454545454556
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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