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________________ 454545454545454545454545454545455 51 एक सच्चे संगठक का कार्य किया। गुना में महाराजश्री के चौमासे का । धर्मपरायण जनता पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ा था। आपकी सदप्रेरणा के : परिणामस्वरूप लगभग बारह ग्रन्थों का प्रकाशन किया, जिनका जनता पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ा था। आपकी सद्प्रेरणा के परिणामस्वरूप लगभग बारह ग्रन्थों का प्रकाशन किया गया, जिनका अनुशीलन करके जन-जन आज भी मुनिश्री को सच्ची श्रद्धाञ्जलि अर्पित कर रहा है। इसी प्रकार भिण्ड आदि कितने ही ग्राम और नगरों की भमि आचार्य श्री के पावन चरणों के स्पर्श से में जब रोग और जीर्णता के कारण शरीर बिल्कुल टूट चुका था, तब भी आप एक सच्चे योद्धा की भाँति अपने कर्तव्य धर्म के प्रति सजग थे। कोटा नगर के निवासी उनकी यह स्थिति देख जब यह सोच रहे थे कि अब तो आचार्यश्री का यहाँ से आगे बढ़ना किसी प्रकार भी सम्भव नहीं, तब कभी हार न मानने वाला उनका दृढ़ संकल्पी मन उन्हें कर्तव्यपालन की ही प्रेरणा दे रहा था। उनके अटल निश्चय ने मानो TE बाधाओं को पीछे ही धकेल दिया था। कोई सोच भी नहीं सकता था कि चर्या - तक के लिए चलने-फिरने में असमर्थ यह सन्त आगे कहीं चौमासा कर सकेगा। उत्तरोत्तर क्षीण अवस्था को देखकर कोटावासियों ने आचार्यश्री से काफी अनुनय-विनय किया कि वह कुछ दिन और कोटा में ही मुकाम करें, किन्तु उनके सामने तो 'रमता जोगी, बहता पानी का सिद्धान्त था। वहाँ से आपने विहार कर ही दिया और ग्राम सांगोद, जो कि आपके जीवन का अंतिम पड़ाव था, वहाँ आकर ठहरे। शारीरिक दुर्बलताअब सीमातीत हो गई थी।जब आचार्य श्री ने देखा कि काया का रथ अब धर्माराधन के योग्य नहीं रहा, तब उन्होंने एक सच्चे योद्धा की भाँति जीवन से हार न मानते हुए मृत्यु को एक आध्यात्मिक महोत्सव के रूप में वरण करने का निश्चय किया। आचार्यश्री विमलसागर जी ने 13 अप्रैल सन् 73 को सांयकाल के 6 बजे यम-सल्लेखनाव्रत धारण किया। रात्रि के 9.44 पर आप समाधिस्थ हुए।आपके स्वर्गारोहण होने का महान दुःखद सन्देश हवा की तरह भारत के कोने-कोने में फैल गया। दूसरे दिन आपके अन्तिम-दर्शन की अभिलाषा लिए अपार जनसमूह एकत्र हो गया। मध्याहन में आपका अन्तिम संस्कार सम्पन्न हुआ। मथुरादेवी का किशोरीलाल अपने जीवन की दीर्घ साधनामयी जीवन-यात्रा पूर्ण कर अन्त 11299 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर मणी स्मृति-ग्रन्थी EEEEEEEनानानाननाद
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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