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उनके साथ में रहकर विद्याध्ययन भी किया। संवत् 1960 में प्रथम चातुर्मास TE फीरोजपुर छावनी (पंजाब) दूसरा चातुर्मास संवत् 1981 में देववन्द । तीसरा
चातुर्मास रामपुर चौथा चातुर्मास वर्धा में किया पश्चात् गुरु की आज्ञा से अलग होकर बारा (सिवनी) में किया। वहाँ से ग्रामों में भ्रमण करते हुए गिरनारजी, मऊ (गुजरात) ईडर राज्य में अगहन सुदी 7 संवत् 1984 के दिन श्री 108 आचार्य शान्तिसागर जी छाणी महाराज के पाद मूल में आपने सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये। वहाँ से तीर्थराज शिखरजी की यात्रा के लिये विहार किया, वहाँ पर दक्षिण संघ भी उपस्थित था, उनके भी दर्शन किये। संवत् 1985 का चातुर्मास आपने श्री 108 आचार्य शान्तिसागर जी दक्षिण वालों के संघ कटनी (मुडवारा) में किया। संवत् 1986 का चातुर्मास कानपुर, पावापुर, लश्कर आदि स्थानों में भ्रमण करते हुए पूर्ण किया। संवत् 1987 का चातुर्मास : श्री 108 आचार्य शान्तिसागर जी छाणी के पाद मूल में इन्दौर में किया तथा : भाद्रपद शुक्ला 7 शनिवार को पांच हजार जनता के समक्ष क्षुल्लक दीक्षा के व्रत ग्रहण किये। वहाँ से विहार कर सिद्धवर कूट आये। वहां श्री 108 आचार्य शान्तिसागर जी छाणी के चरण कमल में दिगम्बरी दीक्षा की याचना की। मिति मंगसिर वदी 14 संवत् 1987 बुधवार (वीर संवत् 2457) के दिन दिगम्बरी दीक्षा धारण की।
उस समय केशलोंच करते समय आप जरा भी विचलित न हुए। दीक्षा संस्कार की सब विधि मंत्र सहित श्री 108 आचार्य वर्य शान्तिसागर जी छाणी के कर-कमलों द्वारा हुई। आपका समाधिमरण मांगीतुंगी में आचार्य महावीरकीर्तिजी के सानिध्य में हुआ।
क्षुल्लक धर्मसागर जी ___आप जन्म से ब्राह्मण थे परन्तु जैन धर्म पर विशेष श्रद्धा होने से उसी ।
का अभ्यास करते रहे। 3-4 वर्ष आप ब्रह्मचारी रूप में रहे तथा आपका नाम . ब्रह्मचारी रूप में चुन्नीलाल शर्मा था। वीर संवत् 2457 में आपने ईडर चातुर्मास : के समय श्री शान्तिसागर जी (छाणी) मुनिराज से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। और आप चारित्र धर्म का उत्तरोत्तर पालन करते हए आत्मकल्याण की ओर अग्रसर होते गये।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ रामानाTER
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