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________________ . - . . - . SURES ' करने का त्याग किया। यहां से संघ विहार करता हुआ बांदा (उत्तरप्रदेश) TE पहुंचा, यहां धर्मोपदेश दिया, फिर अन्यान्य अनेक गांवों में विहार करते हुए संघ सहित महाराज श्री रानीपुर, बरुआसागर होते हुए झाँसी आये। यहां पर अमृत की वर्षा करते हुए करष आये। यहां पर एक धार्मिक पाठशाला की स्थापना कराई एवं कई व्यक्तियों को योग्य नियम दिलाये। यहां से महाराज श्री आमोल आये। यहां पर धर्मोपदेश देकर यहां के ठाकुर को मांस-मदिरा + का त्याग कराया और यहां के जैनियों को यथोचित नियम दिलवाये। यहां से विहार कर सीपरी (शिवपुरी) कोलारस के लोगों का धर्मोपदेश द्वारा कल्याण करते हए संघ सहित महाराज श्री गना आये। ___ गुना मध्यप्रदेश का बड़ा शहर है, जैन समाज की अच्छी बस्ती है। यहां कुछ दिन ठहर कर महाराज श्री बजरंगगढ़ आये। यह बजरंगगढ़ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र माना जाता है। यहां के मंदिर में शांतिनाथ, कुंथुनाथ और - अरहनाथ इन तीन तीर्थकरों की खड़गासन ऊंची विशाल व मनोज्ञ 15 फुट की प्रतिमाएं विराजमान हैं। इनके दर्शन से मन प्रसन्न व शांति का अनुभव करता है। अब वीरसागर जी महाराज तो यहीं रहे और शांतिसागर जी महाराज यहां से विहार कर रुठवाई तथा जावरा होते हुये सारंगपुर आये। यहां पर भगवान महावीर स्वामी की अतीव प्राचीन प्रतिमा मंदिर में विराजमान है। यहां पर धर्मोपदेश देकर अनेक जैनों को रात्रि भोजन का तथा अभक्ष्य भक्षण का त्याग एवं शास्त्र स्वाध्याय का नियम दिलवाये। यहां के ब्राह्मण कपिल ने पूर्णतः जैन धर्म स्वीकार किया। वे रात्रि भोजन त्यागी और नित्य देव दर्शन करने वाले, पूजन भक्ति व स्वाध्याय कर भोजन करने वाले सच्चे जैनी बने। इन्होंने मिथ्या देवी-देवताओं को पूजने का भी त्याग किया। यहां से विहार कर महाराज श्री मक्सी पार्श्वनाथ आये, यह तीर्थ श्वेताम्बर, दिगम्बर दोनों समाज द्वारा मान्य होने से कभी-कभी झगड़े का भी कारण होता है। मक्सी पार्श्वनाथ से विहार कर महाराज श्री उज्जैन पधारे।। उज्जैन नगरी ऐतिहासिक प्राचीन सुप्रसिद्ध नगरी है। यहां पर आप HT घासीलाल कल्याणमलजी धर्मशाला में ठहरे। दो दिन ठहरे सभा में धर्मोपदेश 51 - देकर कई मनुष्यों को सप्तव्यसन और अभक्ष्य भक्षण का त्याग कराया। यहां - से विहार कर महाराज श्री बडनगर पहुंचे। यहां दो दिन ठहर कर धर्मोपदेश दिया, यहां मालवा प्रान्तिक सभा के अर्न्तगत औषधालय और अनाथालय अच्छी 235 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 959999999
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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