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________________ ILSLSLSLSLSLEUS 159454545454545454545454545454545 4 गया का प्रतिष्ठा महोत्सव TE गया जी में संसंघ महाराज 27 दिन रहे, यहां की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा बड़ी धूमधाम से संपन्न हुई। करीब बारह-तेरह हजार मनुष्यों का मेला लगा. उस समय में इतनी संख्या भी किसी भी मेलों में अच्छी मानी जाती थी। फल्गु नदी की रेती में पाण्डाल बनाया। लाखों का सामान फल्गु नदी की रेती में फैला हुआ था। पुलिस का प्रबन्ध अच्छा होने से चोरी आदि नहीं हई। यहां के मंदिर में प्रतिष्ठा में करीब 10 हजार की आय हुई थी, जो कि आज 90 लाख के बराबर हो सकती है। 151955545454545454545454545 T गया से विहार गया से महाराज श्री मुनि वीरसागर जी और मुनि ज्ञानसागर जी के साथ विहार करते हुए रफीगंज आये, यहां आठ दिन रहे। यहां से बीच के अनेक - गांवों में विहार करते हुए शांतिसागर जी महाराज का संघ काशी वनारस पहुंचा। यह हिन्दुओं और जैनियों का बड़ा भारी तीर्थ है। हजारों यात्रियों का आना जाना रहता है, यहां पर भदैनी घाट, भेलपुरा, श्रेयांसपुरी और चंद्रपुरी जैनियों के तीर्थ स्थल हैं और काशी विश्वनाथ के नाम से वैष्णवों का बड़ा - भारी तीर्थ है। यहां मंदिरों के दर्शन किये, सभा में समाज के लोग आते थे। उन्हें धर्मोपदेश से संबोधित किये। यहां से संघ ने इलाहाबाद की तरफ प्रस्थान LE किया, मार्ग में मिर्जापुर की जैन समाज के भाई संघ के साथ हो लिये । और संघ इलाहाबाद आ पहुंचा। संघ पांच दिन यहां ठहरा, एक दिन आम सभा हुई, जिसमें शहर के बड़े-बड़े विद्वान और जैन तथा जैनेतर समाज के भाई सभा में आये, महाराज श्री ने उपदेश दिया, जिसका जनता पर अच्छा प्रभाव पड़ा, यहां आर्य समाजी भाईयों ने कई प्रश्न किये, उनका आचार्य महाराज ने अच्छा समाधान किया जिससे पंडितों और आर्य समाजियों ने महाराज श्री TE की बड़ी प्रशंसा की। यहां से महाराज श्री ने संघ सहित विहार कर दिया, मार्ग में बाराबंकी के भाई आकर ज्ञानसागर जी महाराज को इलाहाबाद वापिस ले गये। श्री वीरसागर जी सहित महाराज अनेक ग्रामों में विहार करते हुए करवा आये। वहां पर उपदेश देकर एक अग्रवाल वैष्णव को जैनी बनाया। उसने घर पर चैत्यालय बनाने का तथा शास्त्र स्वाध्याय का नियम लिया एवं रात्रि भोजन । प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 234 454
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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