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________________ 194545454545454545454545454545455 व विद्वानों के प्रवचन तथा शंका समाधान से लोगों को अच्छा धर्म लाभ मिला। यहां केश लोंच होने से बड़ी धर्म प्रभावना हुई। महाराज श्री ने गिरीडीह में एक सेठ खेलसी दास जी को सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण कराये। यहाँ पर लोगों को मिथ्यात्व छुड़वाया और डाक्टरी दवाई सेवन का त्याग कराया। यहाँ पर श्री कालूराम जी मोदी अपनी धर्मपत्नी के साथ महाराज श्री के उपदेश से जैन धर्म के अनुयायी बने और महाराज श्री को आहार दिया। श्री सुवालाल जी जो कि महाराज श्री से दीक्षा लेकर ज्ञानसागर मुनि बने थे। उन ज्ञानसागर मनि को मनि धर्म से च्यत हो जाने पर पुनः शांतिसागर 1 महाराज जी ने मुनि दीक्षा दी। महाराज श्री ने मुनि संघ में किसी प्रकार की शिथिलता न आये और अनर्गल प्रवृत्ति कोई न कर सके उसके लिये निम्न प्रकार के नियम बनाये जो कि संघ के प्रत्येक साधु को पालन करने अनिवार्य थे, वर्तमान में भी आज के साधुओं को इन नियमों पर ध्यान देकर साधु वर्ग में आई शिथिलता को दूर करना चाहिये वे नियम निम्न प्रकार थे :1. केशलोंच का प्रदर्शन नहीं करना, एक कमरे में केशलोंच करना। 2. केशलोंच में पीछी या कमण्डलु आदि की बोली नहीं लगवाना। 3. किसी भी संस्था के लिये चन्दा नहीं करवाना। कहीं चन्दा करके रुपया दान में देवें तो वहीं की संस्थाओं को रुपया दिला देना। 4. अपने साथ सवैतनिक नौकर नहीं रखना। F- 5. चंदा करने वाले साधु, ऐलक, क्षुल्लक, ब्रह्मचारी कोई भी हो उन्हें संघ में नहीं रखना। 6. परीक्षा किये बिना नये साधु नहीं बनाबें-क्योंकि काल दोष लगने पर धर्म की निंदा व अपवाद होता है। 7. अपने साथ चटाई आदि नहीं रखना, और न उन पर सोना बैठना। - 8. जिस के घर आहार हो उसे किसी भी प्रकार का द्रव्य देने के लिये नहीं कहना। उक्त नियमों का शांतिसागर जी महाराज ने कठोरता से पालन किया व कराया इस कारण से उन दिनों आपके शिष्यों की संख्या न तो बढ़ पाई और न आपका संघ बड़ा भारी बन सका। 232 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ LSLSLSLSLSLSLSLSLSLSLS 45965975
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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