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________________ 454545454545454545454545454545 卐 इस उपसर्ग को सहन करना है, संघ रात्रि को वहीं रहा। किन्तु "मुनि शांतिसागर जी के तप व त्याग के प्रभाव से उपसर्ग करने आये मुसलमानों के भाव सहसा बदल गये और सब साधुओं की वंदना कर चुपचाप किसी भी साधु को बिना मारे या बिना हानि पहँचाये वहाँ से चले गये। इस प्रकार उपसर्ग दूर हुआ या उपसर्ग हुआ ही नहीं, अब महाराज जी TE I ने संघ सहित वहाँ से विहार किया और गया जी की तरफ अपने कदम बढ़ाये।। मार्ग में ही गया जी के कुछ भाई महाराज जी को गया जी ले जाने के लिये आ गये, बड़ी श्रद्धा के साथ तीनों मुनियों को गया ले गये। गयाजी में आपसी समाज के मनमुटाव से मंदिर की प्रतिष्ठा नहीं हो रही थी। महाराज श्री शांतिसागर जी ने प्रयत्न कर समाज में एकता स्थापित की और समाज से 4 प्रतिष्ठा कराना स्वीकार करा लिया। यहाँ से सम्मेदशिखरजी की तरफ प्रयाण किया। बीस पंथी कोठी के मैनेजर ने महाराज के स्वागतार्थ अनेक आदमियों के साथ हाथी भेजा, महाराज जी ने इसका विरोध किया, इस पर कोठी वाले बोले वहाँ पर सैकड़ों वर्षों से कोई दिगम्बर साधु आया नहीं, इससे हमको 51 बड़ी प्रसन्नता होने से स्वागत हेतु हाथी लाये हैं इत्यादि। अब संघी सम्मेदशिखर जी आ गया, यहाँ दिगम्बर मुनि के पर्वत पर वंदना करने और वहाँ पर रात रहने पर श्वेताम्बरो की तरफ से उपसर्ग किया गया। किसी तरह महाराज श्री की तपश्चर्या के प्रभाव से उपसर्ग शांत हो गया। शिखरजी में विद्वान लोग भी आ गये। प्रवचन में श्रोताओं की भीड़ रहती थी। शिखरजी । से महाराज जी गिरीडीह पधारे। गिरीडीह में चातुर्मास विक्रम संवत् 1983 संभवतः ईस्वी सन् 1926 में श्री शांतिसागर जी महाराज (छाणी) और मुनीन्द्र सागर जी का चातुर्मास गिरीडीह (बिहार) श्री' सम्मेदशिखरजी तीर्थ के समीप ही समाज की प्रार्थना से हुआ। वीर सागर जी महाराज तो कोडरमा चले गये। यहाँ पर महाराज श्री ने श्री पं. बुधचंद जी एवं अन्य आगत विद्वानों से गोम्मट्सार, राजवार्तिक, सर्वार्थसिद्धि आदि ग्रंथ पढे और स्वाध्याय किया। करीब 60 या 70 ग्रंथों का आप पारायण कर गये। गिरीडीह चातुर्मास में श्री पं. शिवजी राम जी, श्री पं. जयदेव जी, श्री - पं. झम्मनलाल जी, श्री भगतजी आदि विद्वान गया आये थे, इससे महाराज प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर जणी स्मृति-ग्रन्थ - - 231
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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