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________________ 45454545454545454545454545454545 45 स्त्री में न फंस कर मोक्षरूपी स्त्री से विवाह करना चाहता हूँ।" आपने पिताजी से कहा कि चावे आप जाने की स्वीकृति दे या न दें मैं तो अवश्य शिखरजी की यात्रा पर जाऊँगा। फिर कहा कि मैंने अनन्त भवों में विवाह किया है और उससे कभी भी तप्ति नहीं मिली। इसलिये अब वह संसारी स्त्री में न फंस कर मोक्ष रूपी स्त्री से ही विवाह करना चाहूँगा। इसके बाद केवलदास अपने संबंधियों से मिलने चल दिये। मार्ग में 'कणावरा' ग्राम आया। वहाँ एक सरकारी कोठरी में ठहर गये। उन्होंने रात्रि को स्वप्न में दो पुरुष देखे - जिन्होंने बताया तुम संसार में फिर क्यों डूबते हो तुम्हारा जन्म तो आत्म FI उद्धार के लिये हुआ है। इतना कहकर कर वे गायब हो गये। आँख खुलने पर देखा कि प्रभात काल हो गया तो वे सामयिक करने बैठ गये। वहां से आगे 6 मील पर वन में स्थित श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर में जाकर दर्शन किये। उस दिन नन्दीश्वर द्वीप व्रत का उपवास रखा। अपने बहनोई से स्वप्न LE का फल पूछा और उन्होंने शास्त्र देखकर स्वप्न को लाभकारी बतलाया। शिखर जी की यात्रा वे अपने सभी संबंधियों से मिलते गये। सभी ने उन्हें एक-एक रुपया बिदाई का दिया। उस समय केवलदास जी ने सब संबंधियों से क्षमा मांगी 57 और कहा कि मेरा फिर इधर आना नहीं होगा। वापिस घर आकर यात्रा की तैयारी करने लगे। पिताजी से कहा कि आप आज्ञा देंगे तब भी मैं शिखरजी जाऊँगा और आज्ञा ना देंगे तब भी जाऊंगा। पिताजी ने पूरी बात सोचकर उसे शिखर जी जाने की आज्ञा दे दी। और उन्हें सिर्फ 5 रु.दिये। केवलदास TE के पास 22 रुपये हो गये। रुपया एवं सामान लेकर उन्होंने केशरिया जी - आकर दर्शन किये । और वहॉ से उदयपुर चले गये। वहां से रेल द्वारा अजमेर, अजमेर से मथुरा, मथुरा से बनारस, बनारस से ईसरी और ईसरी से सम्मेद TE शिखरजी पहुँच गये। शिखर जी की एक एक करके तीन वन्दना की। तीसरी वन्दना में सब टोकों पर सब भगवानों से विनय करते चले गये और फिर पार्श्वनाथ की टोकं पर जाकर सब भगवानों से स्तुति की और कहा, कि TE सब भगवान मुझे ब्रह्मचारी की दीक्षा देवें। उस दिन 1 जनवरी सन् 1919 1 था। उस समय उनकी आयु 31 वर्ष की थी। वे मस्तक व चोटी के कुछ + बाल उखाड़ करके ब्रह्मचारी के वस्त्र धारण कर पहाड़ से नीचे आये। यह | प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 186 454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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