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________________ 4519974559146596545454545451745949745146145 उदासीनता आने लगी। तमी उनको दो स्वप्न दिखलायी दिये। एक स्वप्न सम्दशिखरजी का यात्रा करने का था तथा दूसरा स्वप्न गोमटेश्वर बाहुबली TE की प्रतिमा के सामने पजन करते हए सामग्री चढाते हए अपने आपको देखा। इससे केवलदास के धार्मिक विचारों में उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगी। उन्होंने रात्रि भोजन त्याग कर दिया एवं कुदेवों की शरण में नहीं गये। इन्हीं दिनों उन्हें अपने संबंधियों से विषापहार स्तोत्र रत्नकरण्डश्रावकाचार, आलोचना पाठ आदि पुस्तकें प्राप्त हुई। अपने ही छाणी ग्राम में जहां हरिवंश पुराण की शास्त्र स्वाध्याय होती थी, केवलदास वहां भी जाने लगे। केशरियानाथ की यात्रा ___ एक दिन उनके मन में ऋषभदेव केशरियानाथ के दर्शनों की इच्छा हुई और वे तत्काल केशरियानाथ जी की यात्रा के लिये अकेले ही चल पड़े। भगवान ऋषभदेव के दर्शन करके कृत्य कृत्य हो गये और भाव विभोर होकर भविष्य में विवाह नहीं करने की प्रतिज्ञा कर ली। घर आने पर यात्रा की खुशी में एक वर्ष तक एक ही समय भोजन करने का भी नियम ले लिया और इस TE प्रकार केवलदास घर में रहते हुए विरक्ति का जीवन व्यतीत करने लगे। इनके पिता को अपने पुत्र के आचार-विचार देख कर बहुत चिन्ता होने लगी। और उनके विवाह करने का आग्रह करने लगे। लेकिन उन्होंने केशरियानाथ 51 के सामने ली हुई प्रतिज्ञा की दुहाई दी। एक दिन उन्होंने शास्त्र प्रवचन में LE नन्दीश्वर द्वीप व्रत विधान का विस्तार सहित वर्णन सुना तो वे उससे इतने । प्रभावित हुए कि मंदिर में जाकर मंगसिर सुदी 14 को, 108 दिन के व्रत का नियम ले बैठे। अब वे एक उपवास, एक पारणा एवं बीच बीच में तेला भी करने लगे। जिसमें उन्होंने 56 दिन के उपवास एवं 52 दिन का पारणा (एकाशना) करके अपनी धार्मिक मनोवृत्ति को और भी दृढ़ बना लिया। कुछ समय पश्चात् आपने पिताजी से सम्मेद शिखरजी की यात्रा करने की अनुमति चाही लेकिन पिताजी ने कहा कि जब तक वह विवाह करने :की स्वीकृति नहीं देगा तब तक शिखर जी जाने की आज्ञा नहीं मिल सकती। केवलदास ने सोचा कि पिताजी तो मुझे संसार में फँसाना चाहते हैं। उन्होंने अपने पिता से कहा कि "हे पिताजी ! मैं इस संसार में अनन्त बार विवाह कर चुका हूँ, पर तो भी विषयों से तृप्त नहीं हुआ इसलिये अब मैं संसारी 1185 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ ।
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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