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________________ 141414141414141451461454545454545 45 卐 के बल, अथवा यूँ कहिये कि "निसर्गज-सम्यक्त्व" की महिमा से, एक सामान्य 4 और साधारण-शिक्षित ग्रामीण गृहस्थ से आप "जगत्-पूज्य" अवस्था को पहुँच - चुके हैं। हृदय की सच्ची दृढ़ता और विशुद्ध लगन मनुष्य को "रंक से राव" बना देती है, यह श्री मुनिमहाराज के चरित्र से प्रकट है।" गृह-त्याग करके आपने जैन समाज के सच्चे ज्ञान के प्रचार के लिये जो उपाय किये हैं, वे भुलाये नहीं जा सकते। ऐसा मालूम होता है कि आपने भगवान ऋषभदेव के दिव्य चरित्र में, उनको अपनी पुत्रियों ब्राह्मी और सुन्दरी को ही सर्वप्रथम विद्यावान बनाने की घटना से यह स्पष्ट समझ लिया था कि मानव समाज की दशा तब से सम्हल सकती है, तब ही धर्म का समुचित पालन हो सकता है, जब स्त्रियों को सच्चे ज्ञान से विभूषित किया जायेगा। __ "शायद इसी निश्चय के अनुसार आपके उपदेश से कई स्थानों पर श्राविकाश्रम और कन्या-पाठशालाएँ खुल गई हैं। आज धर्म-अर्थ-काम पुरुषार्थ के समचित पालन के लिये जैन समाज की स्त्रियों का ज्ञानवान होना बहत जरूरी है। संघ के अनुशासन के बारे में उन्होंने लिखा "अब आपने एक प्रकार से अपने संघ की व्यवस्था नियमित कर ली है। उसके हर सदस्य को संस्था आदि के लिये रुपये माँगने की मनाही कर दी है। यह ठीक है, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि आपके संघ का कोई भी सदस्य, ब्रह्मचारी, क्षुल्लक या मुनि, समाज-हित की संस्थाओं 1 की स्थापना और सम्हाल करने का उपदेश ही नहीं देंगे। नहीं, वे विद्यादान का महत्व श्रावकों को अवश्य बतायेंगे। उनमें वात्सल्य-भाव की वृद्धि करायेंगे। यह तो धर्म के अंग हैं और इनका पालन उनके द्वारा अवश्य ही होगा, क्योंकि आप्त द्वारा निर्मित जो आगम-ग्रन्थ हैं, उनमें यह सब बातें विशेष हैं। निर्ग्रन्थ मनियों की सिंह-वत्ति है, उन पर केवल आप्त-वाक्य अपना प्रभाव ला सकते हैं।" आगम-ग्रन्थों के मुद्रण सम्बन्धी आन्दोलन और उसके विरोध के बारे में आचार्यश्री के निर्णय की सराहना बाबू कामताप्रसादजी ने इन शब्दों में की___"मुनिजी ने जो छपे ग्रन्थ न छूने का नियम लिया है, वह और किसी - । प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 133 545645454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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