SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 41995199745545145246794454455456 ELELELIHET 24वें तीर्थंकर के शासनकाल में - आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) ने छाणी गांव में संवत् 1945 में जन्म लिया था। भगवान महावीर स्वामी बाल ब्रह्मचारी थे. विवाह नहीं करवाया, स्वयं दीक्षित हो गये थे। इसी प्रकार श्री छाणी जी बाल ब्रह्मचारी रहे विवाह के बारे में पिताजी TF ने चर्चा की तो कैसा उत्तर दिया-वह सुनने लायक है-इस संसार में अनन्त 1 बार विवाह कर चुका हूँ तो भी मैं तृप्त नहीं हुआ, अब मैं ऐसा विवाह करूँगा जिससे भविष्य में विवाह करने की आवश्यकता ही न रहे। (मुक्ति रूपी लक्ष्मी से विवाह करूंगा) जो सदा के लिए सुखदायी होगा, अविनाशी होगा। श्री छाणी जी ने श्री आदिनाथ जी के समक्ष ही क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की थी। श्री आदिनाथ जी के समक्ष ही मुनि दीक्षा ग्रहण करके भावी मुनिमार्ग को प्रशस्त या सुगम बना दिया, जो मुनि मार्ग कुछ समय से विलुप्त सा था। मुनि के दर्शनों को तरसते-तरसते कई कविगण स्वर्गीय हो गए परन्तु हम सबका सौभाग्य आया, जबसे मुनि मार्ग छाणी जी ने प्रशस्त किया. तबसे आज तक मुनि धर्म की परम्परा बराबर चल रही है। यह उनकी बड़ी देन है-इस शताब्दी की। श्री छाणी जी ने मुनि पद धारण करके घोर तपस्या की। 1-1 माह के उपवास करके आत्मा की शुद्धि का लक्ष्य बनाया। परिषह सहन करने में भी आपका लक्ष्य विशेष रहता था। अतः इनका जैन, अजैन जनता पर प्रभाव बहुत था। इनके उपदेश सुनकर जनता मुग्ध हो जाती थी। इनकी त्याग-तपस्या देखकर सभी जैन, अजैन स्वयमेव त्याग व्रत धारण कर लेते थे। इनका उपदेश अन्तरंग की विशुद्ध परिणति से होता था। अतः प्रभावपूर्ण होता था। ऐसे आचार्य श्री के चरणों में मेरा शत-शत नमन है। । - दमोह (म.प्र.) पं. अमृतलाल जैन शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर पाणी स्मृति-ग्रन्थ 60 5454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy