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________________ 451451461454545454545454545 45454545454545454545454545454545 जा हो रहा है। आचार्य श्री ने ऐसे समय में मुनि दीक्षा ली, जब मुनि के दर्शन TE ही दुर्लभ थे। आप बाल ब्रह्मचारी थे। आपने अपने आराधना काल में देश LE के कोने-कोने में दर्शन, ज्ञान, चारित्र की प्रभावना की, वह श्लाघनीय थी। आप घोर तपस्वी तथा विशेष व्यक्तित्व के धनी थे। आपने देश में भ्रमण करके मानव की सोई हुई चेतना को जगाया, जिसका परिणाम यह मिला कि आचार्य सूर्यसागर जी महाराज आपके प्रथम शिष्य बने, जिनकी तपस्या और - दर्शन-ज्ञान-चारित्र की सुगन्ध चारों ओर फैल गई। ____ आज भी आपकी शिष्य परम्परा में मासोपवासी तपोनिधि आचार्य TE सुमतिसागर जी महाराज, आचार्यकल्प सन्मति सागर जी महाराज तथा उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज (जो देश के लघु विद्यासागर जी के नाम से प्रसिद्ध हैं) सभी ज्ञान के प्रसार में लगे हैं तथा विशेष रूप से युवकों TE को सन्मार्ग पर लगा रहे हैं। ऐसे परम तपोनिधि प्रातः स्मरणीय आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज के चरणों में शत-शत वन्दन, नमन। आगरा केवल चन्द्र शास्त्री श्रद्धाञ्जलि एवं संस्मरण परम पूज्य तपोनिधि प्रशममूर्ति आचार्य श्री का जन्म बागड प्रदेश स्थित 57 LF छाणी ग्राम में हुआ था। ग्राम छाणी के कारण उनके शुभनाम के आगे छाणी LE को जोड़ दिया गया ताकि उस ग्राम का भी पुण्य स्मरण होता रहे। आप सौभाग्यशाली श्री भागचन्द जी के घर उनकी धर्मपत्नी सौभाग्यशालिनी श्रीमती माणिक बाई की कुक्षि से केवलदास (जन्म नाम जो दीक्षित होकर शान्तिसागर के नाम से विख्यात हुये हैं) ही केवल ऐसे पुत्ररत्न हुए हैं, जिन्होंने अपनी जन्मस्थली छाणी को सुप्रसिद्ध करा दिया है, जिनका स्मरण युग-युगों तक किया जाता रहेगा। यद्यपि उस समय जैन संत कई रहे होंगे। सर्व भी आपको अपने परिवार में दीर्घ काल से चलते आ रहे संस्कारों ने प्रभावित - - 59 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 51 7751 154545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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