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________________ 41414145147461946749745545454545454545 संस्मरण ___ हमें यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि-युवा मनीषी परम वीतरागी परम पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज की सत्प्रेरणा से प्रशम मूर्ति आचार्य श्री शान्तिसागर जी छाणी स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया है। इस सत् कार्य के लिये आपका अनुमोदन करते हुए अपने TE विचार व्यक्त करता हूँ कि : "प्रभावशाली व्यक्तित्व अनेक होते हैं किन्तु कुछ व्यक्ति स्वयं की प्रेरणा से जगत में अपना प्रभाव स्थापित करते हैं और कुछ व्यक्तियों का जीवन ही इतना सरल और सहज होता है कि दुनिया उनसे सहज प्रभावित होती ॥ है। उनमें आचार्य श्री शान्तिसागर जी छाणी प्रथम चरण के महान तपस्वी 4 एवं दिगम्बराचार्य साधु थे। वे शिशुवत्, निर्विकार उन्मुक्त दीप्तिमान, अनुवन्ध दिव्य पुरुष थे। वर्तमान बुद्धिप्रधान युग में जहां मानव अवनति के पथ पर गतिशील है। क्रोध, मान, माया, लोभ से सारा संसार भस्म हुआ जा रहा है, ऐसी स्थिति में उनका मार्ग-दर्शन निश्चित ही उन्नति का कारण होगा-उनकी दिव्य अमृतमयी वाणी-मार्गदर्शन प्रदान करे। यह हमारी भावना है। 145454545454545454545 हिन्दी पत्रकार 1 अजारी स्टेशन, सिरोही रोड (राज.) श्री भीकम शाह "भारतीय" जैन शत-शत वन्दन ___यह जानकर चित्त को अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि युवा मनीषी, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी दृढ़ मनोबली परम पूज्य 108 उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज की सत्प्रेरणा से प्रातः स्मरणीय प्रशान्त तपोनिधि आचार्य शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के रूप में स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित 1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर ाणी स्मृति-ग्रन्थ 358 15555555555555555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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