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________________ श्रीशान्तिनाथस्तुति । होगये हैं, समस्त जीवोंके रक्षक बन गये हैं और संसाररूपी रोगको हरण करनेवाले होगये हैं। त्वन्नाममंत्र स्मरतां जनानां क्षयादिरोगस्य भगंदरस्य । दुष्टग्रहाणां विषमप्रकोपः काये न चित्चे भवति प्रवेशः ॥६॥ अर्थ- हे परमदेव ! जो भव्य जीव आपके नामरूपी मंत्रका स्मरण करते हैं, उनके शरीरमें न तो क्षय आदि किसी रोगका प्रवेश होता है और न भगंदर आदि रोगोंका प्रवेश होता है। तथा उनके चित्तमें दुष्टग्रहोंका विषमप्रकोप भी कभी नहीं होता। त्वद्धर्मतत्वं पठतां जनानां . सर्वांगदेहे सुखशान्तिपूरः । शंकादिदोषः सुखसंगभीति मोहादिकर्म प्रपलायते च ॥७॥ अर्थ- हे भगवन् ! जो भव्यजीव आपके कहे हुए धर्मतत्वको पढ़ते हैं उनके शरीर और आत्माके समस्त प्रदेशोंमें सुख और शान्तिका पूर समा जाता है। तथा उनके हृदयसे शंकादिक समस्त दोष भाग जाते हैं, सुखोंके भंग होनेका डर भाग जाता है और मोहनीय आदि समस्त कर्म भाग जाते हैं।
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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