________________
[३] प्रसिद्ध थी, सातप्पा व सरस्वती दोनों अत्यंत प्रेम व उत्साहसे देवपूजा, गुरूपास्ति आदि सत्कार्यमें सदा मन रहते थे। धर्मकार्य को वे प्रधान कार्य समझते थे। उनके हृदयमें आंतरिक धार्मिक श्रद्धा थी। श्रीमती सौ. सरस्वतीने संवत् २४२० में एक पुत्र रत्नको जन्म दिया, इस पुत्रका जन्म शुक्लपक्षकी द्वितीयाको हुआ, इसलिये शुक्ल पक्षके चंद्रमाके समान दिनपर दिन अनेक कलावोंसे वृद्धिंगत होने लगा है। मातापिनावोंने पुत्रका जीवन सुसंस्कृत, हो इस सुविचारसे जन्मसे ही आगमोक्त संस्कारोंसे संस्कृत किया जातकर्म संस्कार होनेके बाद शुभ मुहूर्तमें नामकरण संस्कार किया गया जिसमें इस पुत्रका नाम रामचंद्र रखा गया। बादमें चौल कमें, अक्षराभ्यास, पुस्तक ग्रहण आदि संस्कारोंसे संस्कृत कर सद्विद्याका अध्ययन कराया। रामचंद्रके हृदयमें बाल्यकालसे ही विनय, शील व सदाचार आदिभाव जागृत हुए थे जिसे देखकर लोग आश्चर्य व संतुष्ट होते थे, रामचंद्रको बाल्यावस्थामें ही साधु संयमियोंके दर्शनमे उत्कट इच्छा रहती थी, कोई साधु ऐनापुरमें आते तो यह बालक दौडकर उनकी वंदनाके लिये पहुंचता था। बाल्यकालसे ही इसके हृदयमें धर्ममें अभिरुचि थी, सदा अपने सहधर्मियोंके साथमें तत्वचर्चा करने में ही समय इसका बीतता था। इस प्रकार सोलह वर्ष व्यतीत हुए। अब मातापितावोने रामचंद्रको विवाह करनेका विचार प्रकट किया, नैसर्गिक गुणसे प्रेरित होकर रामचंद्रने विवाह के लिये निषेध किया एवं प्रार्थनाकी कि पिताजी ! इस लौकिक विवाहसे मुझे संतोष नही होगा। मैं अलौकिक विवाह अर्थात् मुक्तिलक्ष्मीके साथ विवाह करलेना चाहता हूं।