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________________ ५९ श्रीधर्मनाथस्तुति। श्रीधर्मनाथस्तुति। DSE सुव्रतायाः कृपावत्या भानोर्नीतिनिधेः प्रभोः। धर्मदो धर्मनाथश्च सर्वसिद्धिप्रदोऽभवत् ॥१॥ अर्थ- सब प्रकारकी सिद्धियोंको देनेवाले और धर्मका उपदेश देनेवाले भगवान् धर्मनाथ परमदेव कृपावती महारानी सुव्रता और नीतिके निधि महाराज भानुदेवके पुत्र हुए थे। कषायमूलानि सुदुःखदानि कर्माणि सर्वाणि निहत्य शीघ्रम् । दृग्बोधशीलैश्चरणैस्तपोभि र्जातोसि वंद्यो भुवि धर्मनाथः ॥२॥ अर्थ- भगवान् धर्मनाथ सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान शील चारित्र और तपके द्वारा कपायोंके मूलकारण और महादुःख देनेवाले समस्त कर्मोको शीघ्र ही नाशकर समस्त संसारके द्वाग वंदनीय होगये हैं। स्वात्मप्रदेशेषु सदैवलीनान दृष्टयादिमुख्यान गुणसंचयांश्च । परैरचिन्त्यान सहभाविनश्च जातोसि लब्ध्वा खलु तेषु तृप्तः ॥३॥
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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