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________________ ३९ श्रीशीतलनाथस्तुति । श्रीशीतलनाथस्तुति । धर्मपत्न्याः सुनन्दायाः राज्ञो दृढरथस्य च । शीतलो लोकनाथश्च जातः कारिनाशकः॥१॥ ___ अर्थ-कर्मरूपी समस्त शत्रुओंको नाश करनेवाले और तीनों लोकोंके स्वामी भगवान् शीतलनाथ महाराजा दृढरथकी धर्मपत्नी महारानी सुनन्दाके पुत्र थे। चन्द्रप्रभा चन्दनपुष्पहारा: शीतस्वभावं समये त्यजन्ति । स्थिरस्त्रिलोके तव शान्तिशीत. स्त्वमेव शीलो जिन शीतलाख्यः ॥२॥ अर्थ- हे जिन शीतलनाथ परमदेव ! चन्द्रमाकी चांदनी, चन्दन और पुष्पोंका हार समयपर अपने शीतल स्वभावको छोड देते है परतु आपकी शान्तिरूपी शीतलता तीनों लोकोंमें सदा स्थिर रहती है। इसलिये कहना चाहिये कि इस संसार में आप ही शीतल हैं। लेपेन तेषां खलु धारणेन भवन्ति तृप्ताः क्षणमात्रमेव । आकर्ण्य ते शीतलमिष्टवाणी तुष्टाःसदा स्वात्मरसे भवन्ति ॥३॥
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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