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________________ श्रीचन्द्रप्रभजिनस्तुति । त्वद्धर्मलीनाश्च भवन्ति बंद्या ये त्वत्समानाश्च त एव मुक्ताः । स्वर्मोक्षमूलस्य सुखपदस्य चन्द्रप्रभोस्ते महिमास्त्यचिन्त्यः ॥६॥ अर्थ- हे प्रभो ! जो पुरुष आपके धर्ममें लीन हो जाते है वे वंदनीय हो जाते हैं, आपके समान हो जाते हैं और मुक्त हो जाते हैं । हे चन्द्रप्रभ ! आप स्वर्ग और मोक्षके मूल कारण हैं और सुखके देनेवाले हैं इसीलिये हे नाथ, आपकी महिमा अचिन्त्य हैं। स्वमोक्षदं ज्ञानकलानिधानं ___श्लाघ्यं पवित्रं सुखशान्तिरूपम् । सुभव्यराजीवप्रमोदभानुं ० संसारसंतप्तनिशाकरं च ॥७॥ चन्द्रप्रभं चन्द्रसमानशान्तं वंद्यं सुपूज्यं च नरामरेन्द्रैः। ध्यायामि भक्त्या मनसा स्मरामि संसारकान्तारविनाशहेतोः ॥८॥ अर्थ- भगवान् चन्द्रप्रभ स्वामी स्वर्ग मोक्षके देनेवाले हैं, ज्ञान और कलाओंके निधान हैं, प्रशंसनीय हैं, पवित्र हैं,
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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