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श्री चतुर्विंशतिजिनस्तुति |
अर्थ - भगवान् पद्मप्रभके शरीरका वर्ण पद्म अर्थात कमलके ही वर्णके समान है। और उनकी भव्य मूर्ति ( दिव्य शरीर ) अनेक प्रकारकी लक्ष्मीके द्वारा आलिंगन किया हुआ है । जिस प्रकार सूर्य श्रेष्ठ कमलोंको प्रफुल्लित करता है उसी प्रकार पद्मप्रभ भगवान् भव्य जीवोंको प्रफुल्लित करनेवाले हैं । पद्मप्रभोरेव शरीरकान्त्या प्रातश्च सायं शशिनो स्वेर्भा । अद्यापि मन्दास्ति पराजिता कौ यथार्थ चन्द्रश्च रविस्त्वमेव ||४||
अर्थ - भगवान् पद्मप्रभके शरीरकी कान्तिसे हार करके ही क्या मानो चन्द्रमाकी प्रभा प्रातःकाल के समय आजतक मंद हो जाती है और सूर्यकी प्रभा सायंकाल के समय आजतक मंद हो जाती है । इसलिये कहना चाहिये कि इस संसार में वास्तविक सूर्य और चन्द्रमा आप ही हैं । प्रोक्ता प्रमेयं तव विग्रहस्य लोकेस्त्यगम्यैव निजात्मकान्तिः । त्वद्धर्मवायैः सकलैश्च जीवैः
त्वद्वर्मलीनैः सुलभास्ति भव्यैः ॥ ५ ॥
अर्थ- हे प्रभो ! संसार में ऐमी उत्तमप्रमा केवल आपके शरीरकी चतलाई है, आपके आत्माकी कांति तो अगम्य और विशेषकर आपके धर्मको न माननेवाले समस्त मिथ्या
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