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________________ १५ श्रीअभिनन्दननाथस्तुति । श्रीअभिनन्दननाथस्तुति । १ सिद्धार्थायाः दयायाः संवरस्य दयानिधे । यश्चाभिनन्दनो जातः स्वात्मानन्दशिवप्रदः॥१॥ ___ अर्थ- भगवान् अभिनन्दन स्वामी अत्यंत दयालु माता महागनी सिद्धार्था और दयानिधि महाराज संवरके पुत्र थे । वे भगवान अपने आत्मासे उत्पन्न हुए आनन्दस्वरूप मोक्षको देनेवाले हैं। श्रीमोक्षलक्ष्म्याः स्वगुणैरचिन्त्यै यो भाति शुद्धैरचलैरनन्तैः । को सोऽभिनन्द्यो मुनिभिश्च वंद्यः शान्त्यार्थभिश्वेतसि चिन्तनीयः॥२॥ ___ अर्थ-- जो भगवान् अभिनन्दन स्वामी गुणोंसे अनेक प्रकार की लक्ष्मीसे विभूपित ऐमी मोक्षलक्ष्मीके शुद्ध अचल अनन्त और अचिन्त्य श्रेष्ठ गुणोंसे शोभायमान हैं, जो समस्त पृथ्वीभर में प्रशंसनीय हैं और शान्ति चाहनेवाले भव्य जीवोंको हृदयमें चितवन करने योग्य हैं ऐसे भगवान अभिनन्दन स्वामी मुनियों के द्वारा भी बंदना करने योग्य हैं । निजात्मबाह्ये मलिने शरीरे परैः पदार्थः घटिते विधात्रा।
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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