________________
अजितनाथस्तुति । अजितनाथस्तुति।
विजयायाः क्षमामूर्जितशत्रोर्जगद्विभोः । बभूवाजितनाथोऽयं भव्यभानुःसुखप्रदः ॥१॥
अर्थ- भगवान् अजितनाथ स्वामी क्षमाकी मूर्ति महारानी विजयाके और जगतके स्वामी महाराज जितशत्रुके पुत्र थे। वे भगवान् ! भव्य रूपी कमलोंको प्रफुल्लित करनेके लिये सूर्यके समान थे और सब जीवोंको सुख देनेवाले थे। संसारतापैर्विविधैः सदैव
तप्तषु भव्येषु दयां विधाय । तेभ्यो जनेभ्यः सुखशान्तिमार्ग
प्रबोध्य जातो भवरोगवैद्यः ॥२॥ अर्थ-- जो भव्य जीव अनेक प्रकारके संसारके संतापसे सदा संतप्त हो रहते थे उनपर दया करके भगवान् अजित नाथने उन भव्य जीयोंके लिये सुख और शान्तिके मार्गका उपदेश दिया और इस प्रकार वे भगवान् संसाररूपी रोगको दूर करनेवाले वैद्य बन गये । मिथ्यात्वजाले दृढबंधयुक्तान
विलोक्य जीवान भुवि तेन खिन्नान् ।