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________________ श्रीशान्तिसागरचरित्र बहुभिः श्रावकैः सार्द्ध नरै राज्याधिकारिभिः । जैपुरं प्राविशत्सरिः संघेन सह योगिराट् ॥८॥ अर्थ- अनेक श्रावकोके साथ, अनेक राज्यके अधिकारी लोगोके साथ उन मुनिराज आचार्यने अपने समस्त संघ सहित जैपुरनगरमें प्रवेश किया। त्यक्त्वा तदुपदेशेन शूद्रहस्त नलं नराः । बभूवुबहवो धन्या गुणज्ञा व्रतधारिणः ॥८॥ धर्मसंवर्द्धकं क्षेत्रं जनान ज्ञात्वा सुधार्मिकान् । वर्षायोगो धृतस्तत्र संघेन गुरुणा सह ॥२॥ अर्थ---- उनके उपदेशसे शके हाथसे पानी पीनेका त्यागकर बहुतसे लोग धन्य होगये, गुणज्ञ बनगये और बहुतसे व्रती बनगये। आचार्य महाराजने उम क्षेत्रको, धर्मको बढानेवाला समझकर और लोगोको धार्मिक समझकर वहींपर संघके ' साथ वर्षायोग धारण किया। मोक्षदं शान्तिदं कुर्वन् क्षमापूर्ण महातपः।। चातुर्मासं समाप्यैवं ततोपि पुरतोऽचलत् ॥८३॥ अर्थ- वहांपर मोक्ष और शान्तिको देनेवाले और क्षमासे परिपूर्ण तपश्चरण करते हुए उन आचार्यने चातुर्मास पूर्ण किया और फिर आगे चले। विहरन् तत्र सर्वत्र धर्ममुद्योतयन् सदा। उपसर्ग सहन् धीरः भव्यान् संतोषयन मुदा ॥८४
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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