SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ श्रीशान्तिसागरचरित्र । उस क्षेत्रको धर्मानुकूल समझकर और लोगोंको सुयोग्य समझकर आचार्यमहाराजने संबके साथ जिनधर्मको बढानेवाला वर्षायोग धारण किया। घासीलालो दयामूर्तिः संघभक्तशिरोमणिः । गेंदमल्लादिभिः पुत्रैः त्रिभिः परमधार्मिकैः ॥३६॥ धर्मपत्न्यादिभिः साद्धं कुटम्बमाहितैस्तदा। विनयेन सुभक्त्यैव गुरुं नत्वा पुनःपुनः ॥३७॥ बहुभिः श्रावकैः साई गतवान् स्वपुर प्रति।। श्रीरावजी सखारामोधर्मवीरो दयानिधिः॥३८॥ राजीमत्या स्वपल्या च दाक्षिणात्यसुधार्मिकैः । बहुभिः श्रावकैः साई गतवान् स्वपुरं प्रति ॥३६ अर्थ-संघभक्तशिरोमणि दयामृति सेठ धामीलालजी, गेंदमल आदि अपने परम धार्मिक तीनों पुत्रोके साथ अपनी और पुत्रोंकी धर्मपत्नियोंके साथ तथा समस्त कुटंबके साथ तथा अनेक श्रावकोंके साथ यहां तक रहे थे। कटनी पहुंचकर उन्होने बडी विनय और बडी भक्तिके साथ वार वार आचार्य महाराजको नमस्कार किया और सबके साथ अपने स्थानको चले गये । दयानिधि धर्मवीर सेठ रावजी सखाराम अपनी धर्मपत्नी राजमतीके साथ तथा दक्षिणके अनेक भव्य श्रावकोंके साथ आये थे, वे भी अपने नगरको लौट गये । इति पूर्वदिक्संधिः ।.
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy