SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ श्रीशान्तिसागरचरित्र । सम्मेदशिखर पर्वतपर पहुंचे। श्रेष्ठिना संघभक्तेन प्रतिष्ठा कारिता तदा। उत्सवैर्विविधैः सार्द्ध वाद्यैर्योग्यैर्मनोहरैः ॥२७॥ श्रेष्ठिनः पण्डिताः सर्वे त्यागिनो मुनयस्तदा। आगता दर्शनार्थ हि प्रायो लक्षाधिका नराः॥२८ तैरमा वंदनां कृत्वा कृत्वा तान् मोक्षगामिनः । सर्वानस्थापयद्धमें दयालुः शांतिसागरः ॥२९॥ पूज्यक्षेत्रे जगद्वंये दिनानि च कतिचिस्थितः। ततः प्रयाणं कृतवान् सम्मेदशिखरात्प्रभुः ॥३०॥ अर्थ- उसममय संघभक्त शिरोमणि सेठ घासीलालजी ने पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराई थी। उसममय अनेक प्रकारके उत्सव किये गये थे, मनोहर और योग्य बाजे बजवाये थे। उमसमय दर्शन करनेके लिये सब सेठ, सब पंडित, सब त्यागी और सब मुनि आये थे। लगभग सवा लाख मनुष्य इकट्टे हुए थे। आचार्य शांतिसागरने उन सबके साथ सम्मेदशिखरकी चंदना की थी। उन सवको मोक्षगामी बनाया था, सबको उपदेश दिया था और सबको धर्ममें स्थापन किया था। इसप्रकार जगत्वंद्य उम पूज्य पर्वतके समीप वे कुछ दिनतक रहे थे । तदनंतर उन प्रभु शांतिसागरने उस पूज्य सम्मेदशिखरसे प्रयाण किया था।
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy