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________________ २२ श्रीशान्तिसागरचरित्र । धर्मेच स्थापयन भव्यान तत्संस्कारं च कारयन् । स्वात्मबोध सदा कुर्वन् चातुमास व्यतीतवान् ।। अर्थ- तदनंतर वहांसे भी वे चले। मार्गमें अनेक भव्य श्रावकोंको उपदेश देते जाते थे, चलते चलते वे अनेक सुनि और श्रावकोके साथ नांदणी गांवमें पहुंचे । वहांपर देवेन्द्र देवगौडा, नेर्द आदि मुख्य मुख्य श्रावकोंने विशेष प्रार्थना की इसीलिये अत्यंत बुद्धिमान आचार्य शांतिसागरने वहींपर वर्षायोग धारण किया। जप, तप, ध्यान करते हुए तथा व्रतोंको पालन करते हुए वे आचार्य संघसहित वहीं रहने लगे। वहांपर उन्होंने अनेक भन्यजीवोंको धर्ममें स्थापन किया, अनेक भव्यजीवोंको संस्कार करानेका उपदेश दिया और स्वयं आत्मज्ञान प्राप्त किया । इसप्रकार उन्होंने वह चातुर्मास पूर्ण किया । वंशस्थलगिरेः स्वामी यात्रार्थ श्रावकैवरैः । चचाल मुनिभिः साकं स्वधर्म स्थापयन् जनान् । ___ अर्थ- तदनंतर वे शांतिसागर स्वामी मार्गमें अनेक भव्यजीवोको जिनधर्ममें स्थापन करते हुए, अनेक धर्मात्मा श्रावकोके साथ तथा अनेक मुनियोके साथ श्री कुंथलगिरिकी यात्राके लिये चले। वने स्थले गिरौ कुर्वन् धर्मध्यानं च मंगलम् । मिथ्यात्वं ध्वंसयन् धीरः सम्यक्त्वं स्थापयन् तथा।। नद्यद्रिपुरमुलंध्य प्राप्तस्तत्र दयानिधिः ।
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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