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श्रीशान्तिसागरचरित्र। वीरे मोक्षं गते कालेऽष्टनवत्यधिके शुखे । त्रयोविंशतिशतेऽब्दे पष्ठयां जातस्तृतीयतुक् ।।१२ आषाढकृष्णपक्षे च शुभलने शुभे ग्रहे। चरित्रनायकः श्रीमान दयालुः सातगौडकः॥१३
__ अर्थ- भगवान् वर्धमान स्वामीके मोक्ष जानेके बाद शुभसंवत् तेईससौ अठानवेके आपाढ शुक्ला पष्ठीके दिन शुभलम
और शुभ ग्रहोंके होते हुए, तीसरा पुत्र जो इस चरित्रका नायक श्रीमान् दयालु सातगोडा उत्पन्न हुआ था। वृषाद्धि लातगौडोऽयं भावी श्रीशान्तिसागरः । जिनधर्ममहाकाशचन्द्रो मिथ्यात्वनाशकः ॥१४ ___ अर्थ- धर्मके प्रभावसे यही सातगौड पुत्र आगे चलकर शांतिसागरके नामसे प्रसिद्ध हुए हैं, जो कि मिथ्यात्वको नाश करनेवाले हैं और जिनधर्मरूपी महा आकाशमें चन्द्रमाके समान सुशोभित होते हैं। बालसूर्यो यथासाति प्राच्यामतिप्रभावजः। सातगौडो तथा चासीदक्षिणेपि मनोहरः ॥१५
अर्थ- जिसप्रकार पूर्वदिशामें उदय होता हुआ अत्यंत प्रभाका समूहरूप घालसूर्य शोभायमान होता है, उसीप्रकार अत्यंत मनोहर ऐसा यह सातगौडा दक्षिण दिशामें शोभायमान होरहा था। अथवा दक्षिण दिशामें जाकर जिसप्रकार सूर्य