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वृहज्जैनवाणीसंग्रह wwwwwwwwwwwwwwwwwwwww wwwwww
* कर शीष नवावे तुमको भविजन खड़े खड़े । यह सब पूरो आस हमारी चरण शरणमें आन पड़े॥८॥
५४-सायंकालकी स्तुति । 1. हे सर्वज्ञ ! ज्योतिमय गुणमणि बालक जनपर करहु
दया॥ कुमति निशा अँधियारीकारी सत्यज्ञानरवि छिपा दिया ॥ १ ॥ क्रोध मान अरु माया तृष्णा यह बटमार फिरे चहुं ओर ॥ लूट रहे जग जीवनको यह देख अविद्या* तमका जोर ॥ मारग हमको सूझे नांहिं ज्ञान विना सब
अन्ध भये । घटमें आय विराजो स्वामी बालक जन सब
खड़े भये ॥ ३॥ सतपथ दर्शक जनमन हर्षक घटघट । * अन्तरयामी हो ॥ श्रीजिनधर्म हमारा प्यारा तिनके तुम ही
स्वामी हो ॥४॥ घोर विपतमें आन पड़ा हूँ मेरा बेड़ा पार * करो। शिक्षाका हो घर घर आदर शिल्पकला सचार करो * ॥५॥ मेल मिलाप बढ़ावे हम सब द्वेष भावकी घटाघटी। नहीं सतावे किसी जीवको प्रती क्षीरकी गटागटी ॥६॥ मात पिता अरु गुरुजनकी हम सेवा निशदिन किया करे॥ स्वारथ तजकर सुखदें परको आशिष सबकी लिया करें॥७॥
आतम शुद्ध हमारा होवै पाप मैल नहिं चढ़े कदा ॥ विद्या* की हो उन्नति हममें धर्म ज्ञान हूं बढ़े सदा ।। ८ ।। दोउ* कर जोरें बालक ठाड़े करें प्रार्थना सुनिये तात ॥ सुखसे ।
बीते रैन हमारी जिनमतका हो शीघ्र प्रभात ॥ ९॥ मात * पिताकी आज्ञा पालें गुरुकी भक्ति घरे उरमें ॥ रहें सदा
हम करतबतत्पर उन्नति. कर निज निजपुरमें ॥ १०॥