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बृहज्जैनवाणीसंग्रह काणभिक्षु और पात्रकेशरी। श्रीवज्रसूर महासेन श्रीप्रभाकरी शिरीजटाचार गुरु वीरसेन हैं। जैसेन शिरीपाल मुझे कामधेन हैं ।जैवंत०॥२५॥ इन एक एक गुरुने जो ग्रंथ बनाया। कहि कौन सके नाम कोइ पार ना पाया ॥ जिनसेन गुरूने महापुराण रचा है । मरजाद क्रियाकांडका सब मेद * खचा है ॥ जैवंत० ॥२६॥ गुणभद्र गुरूने रचा उत्तरपुरानको। सो देव गुरूदेवजी कल्यानथानको ॥रविषेण गुरूजीने ।
रचा रामका पुरान । जो मोहतिमर माननेको भानुके समान । जैवंत०॥२७॥ पुन्नाटगणविष हुये जिनसेन दूसरे। हरि-। । वंशको बनाके दास आसको भरे ॥ इत्यादि जे वसुवीस * सुगुण मूलके धारी । निग्रंथ हुये हैं गुरू जिनग्रंथके कारी॥ * जैवंत०॥२८॥ वंदौ तिन्हें मुनि जे हुये कवि काव्य करैया।
वंदामि गमक साधु जो टीकाके धरैया ॥ वादी नमों मुनि बादमें परवाद हरैया । गुरुवागमीककों नमो उपदेश करैया । ॥ जैवत० ॥२९॥ ये नाम सुगुरु देवका कल्याण करै है। भविदका ततकाल ही दुखद्वंद हरै है । धनधान्य ऋद्धि सिद्धि नवों निद्धि भरे हैं। आनंद कंद देहि सबी विन्न टरै हैं । । जैवंत०॥३०॥ इह कंठमें धारै जो सुगुरु नामकी माला। परतीतसों उत्पीतिसों ध्यावै जु त्रिकाला । इहलोकका सुख * भोग सो सुरलोकमें जावै । नरलोकमें फिर आयके निरवान
को पावै ।। जैवंत० ॥ ३१॥ . .