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________________ बृहज्जैनवाणीसंग्रह ५१५ wwwwwwww...V wwwwwwwwwww ३२० - दादरा दया करने में जियरा लगाया करो || टेक || भूमि निरख कर चालो सहजमें, जीवोंको पगसे बचाया करोरे ॥१॥ सब जीव जगके अपनेसे जानो, काहूंका मन ना दुखाया करोरे ॥ २॥ हिंसा करनेसे दुरगति मिलेगी, नरकों में पड दुख न पाया करोरे ||३|| प्रभु परम धर्म भारी अहिंसा, जिन वैन मनमें बसाया करोरे ॥ ४॥ ३२१ - दादरा ठुमरी देश। गिरनारियोंपै चलूंगी प्रभुजी थारे लार ॥ टेक ॥ सुन २ री सजनी यह संसार असार । नहीं २ यहां रहना जाऊंगी जहां भरतार ॥ सुन २ री सजनी भूषण देऊंगी उतार । नहीं२ री मुझको नीको लगेरी शृगांर ||२|| सुन २ री सजनी जर्पू मंत्र नवकार | नहीं २ री जिससे नैया पडीरी मंझधार । सुन री सजनी तुर्रम हैरी हुस्यार | नहीं २ रे मेरे भक्ति सिवा कुछ कार ||४|| ३२२ -- दादरा थिबेटर । जागो चेतन पिया देखो कबकी खड़ी || टेक || मोहकी सेज अनर्थकी चादर, संगमें दासी सोवे पडी ॥१॥ जात पात न छुटत छुटाये, प्रीति लगाई थी कैसी घडी ॥२॥ ज्ञानकी बरषा रिमझिम बरसे, श्रीजिनधुनघन लागीझडी ॥३॥ ध्यान हिंडोले हम तुम झूले, पहरके रत्नोंकी मुक्ता लडी ||४|| सुमति पुकारे बोलो मंगत, अब नहिं बोलो तो गफलत पडी ||
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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