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________________ *ARASHTRACK-* वृहज्जैनवाणीसंग्रह ५१३ १ अतनमदमारयो, हिरदै धारयो वैराग ।। वनमै ॥३॥ (एजी) । रजनी भयानक कारी, विचरै व्यंतर चैताल ॥ बनमै०॥४॥ बरसै विकट धनमाला, दमकै दामिनि चालै, वाय ॥ वनमै । ॥५॥ सरदी कपिन मद गालै, थरहर कांप सब गात ॥ वनमै ॥६॥ रविकी किरन सर सोखै, गिरिपै ठाड़े मुनिराज॥ वनमैं ।।७। जिनके चरनकी सेवा, देवै शिवसुख। साज ॥ वनमैं० ॥८॥ अरजी जिनेश्वर येही, प्रभुजी राखो । मेरी लाज ।। वनमैं ॥९॥ (३१६ ) बधाई-पार्श्वनाथ भगवानकी बामाघर बजत बधाई, चलि देखरी माई ।। टेक ॥ सुगुनिरास जग-आस-भरन तिन, जने पार्श्वजिनराई । श्री ही धृति कीरति बुधि लछमी, हर्षित अंग न माई ॥ चलि * देखरी० ॥१॥ वरन वरन मनि चूर सची सब, पूरत चौक सुहाई । हा हा हू हू नारद तुंबर, गावत श्रुति सुखदाई ॥ चलि.देखरी ॥२॥ तांडव नृत्य नटत हरिनट तिन, नख नख सुरीं नचाई । किन्नर करधर बीन बजावत, गमन। हर छवि छाई ॥चल देखरी० ॥ ३॥ दौल तासु प्रभुकी । * महिमा सुर,-गुरुपै कहिय न जाई । जाके जन्मसमय नरकनमै, नारिकि साता पाई ।। चलि देखरी माई० ॥४॥ ३१७-राग ललित एकतालो। बधाई राजै हो आज राजै, बधाई राजे, नाभिरायके । द्वार बधाई ।। टेक ॥ इंद्र सचीसुर सब मिलि आए, सज। *- - -- - -
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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