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________________ annan -. AAAAAAAAAAAAAAAAAMA १.४८६ बृहज्जैनवाणीसंग्रह * लबाल बोलिया जु दोय लाख देउंगो, सुवांटिके तमोल । मै जिनेन्द्र माल लेउंगो ॥ १६ ॥ जुसंभरी कहें। सुमेरि खानि लेहु जायके । सुवर्ण खानि देत हैं चित्तौड़िया । बुलायके । अनेक भूप गांव देउ रायसो चन्देरिका । खजा। * न खोली कोठरी सु देत हैं अमेरिका ॥१७॥ सुगौड़वाल कयों कहैं गयन्द बीस लीजिये। मंगाय देव हेमदन्त माल मोहि दीजिये ॥ परमारके तुरंग सजि देत हैं विना गिने । लगाम जीन पाहुडे जड़ाउ हेमके बने ॥१८॥ कनौजिया । कपूर देत गाड़िया भरायके। सुहीरा मोती लाल देत ओस-1 * चाल आयके । सु हूंमडा हंकारहीं हमैं न माल देउगे। भराइये जिहाजमें कितेक दाम लेउगे ॥१९॥ कितेक लोग • आयके खडेथे हाथ जोरिके । कितेक भूप देखिके चले जु बाग मोरिकें । कितेक सूम यों कहैं जु कैसे लक्षि देत हौ।। लुटाय माल आपनों सु फूलमाल लेत हौ ॥२९॥ कई प्रवी न श्राविका जिनेन्द्रको बधावहीं । कई सुकण्ठ रागसों खड़ी * जुमाल गावहीं । कईसु नृत्यकों करै लो अनेक भावहीं ।। कई मृदंग तालपै सु अंगको फिरावहीं ॥२९॥ कहैं गुरु उदारकधी सुयों न माल पाइये ॥ कराइये जिनेन्द्र यज्ञ विवह भरा इये ॥ चलाइये जु संघजात संघही कहाइये । तवै अनेक ! पुण्यसों अमोल माल पाइए ॥२२॥ संबोधि मुर्व गोटिसो गुरू उतारके लई । बुलायकें जिनेन्द्र माल संघरायको दई।। * अनेक हर्षसों करें जिनेन्द्रतिलक पाइये। सुमाल श्रीजिने । न्द्रकी विनोदीलाल गाइए ॥२३॥
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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