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________________ KAKK-5-25 - RR* .... wr.... .. . .. .... .. बृहज्जैनवाणीसंग्रह ____ भयो महोत्सव नेमिको, जूनागढ़ गिरनार । ___जाति चुरासिय जैनमत, जुरै क्षोहनी चार ॥२॥ माल भई जिनराजकी, गूंथी इन्द्रन आय ।। देशदेशके भव्य जन, जुरे लेनको धाय ॥३॥ . छप्पय-देश गौड़ गुजरात चौंड़ सोरठि वीजापुर। करना-. टक कशमीर मालवी अरु अमरेधुर ॥ पानीपत हींसार और • वैराट लहा लघु । काशी अरु मरहट्ट मगध तिरहुत पट्टन सिंधु ॥ तंह बंग चंग बन्दर सहित, उदधि पारला जुरिय सब । आये जु चीन मह चीन लग, माल भई गिरनारि जव नाराच छन्द-सुगन्ध पुष्प वेलि कुंदि केतकी मंगायके । * चमेली चंप सेवती जूहीगुही जुलायकें। गुलाब कंज लायची • सर्व सुगन्ध जातिके । सुमालती महा प्रमोद लै अनेक भांति के ॥५॥ सुवर्णतार पोई बीच मोती लाल लाइया । सु हीर * पन्न नील पीत पद्म जोति छाइया ।। शची स्त्री विचित्र भांति । चित्त देवनाइ है। सुइन्द्रने उछाहसों जिनेन्द्रको चढ़ाई है। ॥६॥ सुमागहीं अमोल माल हाथ जोरि बानिये। जुरी तहां चुरासि जाति रावराज जानिये ॥ अनेक और भूपलोग सेठ साहुको गने। कहालुं नाम वर्णिये सु देखते सभा बनें। ॥७॥ खण्डेलवाल, जैसवाल, अग्रवाल, आइया ।। वघरवाल, पोरवाल देशवाल, छाइया ॥ सहेलवाल, दिल्लिवाल, सेतवाल जातिके । बढ़ेलवाल 'पुष्पमाल ! * श्री श्रीमाल पांतिके ॥८॥ सु ओसवाल पल्लिवाल । MKKKR-52 *
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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