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वृहज्जैनवाणीसंग्रह
छप्पय ( छन्द) ___ कीड़ी बुभवल हरे, कम्प गह करे कसारी। मकड़ी
कारण पाय कोढ़ उपजे दुख भारी ॥ जुयां जलोदर जने 1 फांस गल विथा बढ़ावै । वाल सवे सुरभंग वमन माखी उप
जावे ॥ तालुवै छिद्र बीछू भखत और व्याधि बहु करहि । * सब । यह प्रगट दोष निश असनके परभव दोष परोक्ष फल। हैं जो अघ इह भव दुख करे, परभव क्यों न करेय, डसत।
सांप पीडै, तुरत लहर क्यों न दुख देय । सुवचन सुन डा। हारजे, मूरख मुदित न होय । मणिधर फण फेरे सही, नहीं ।
साप वह होय ॥ सुवचन सतगुरुके वचन, और न सुवचन कोय । सतगुरु वही पिछानिये, जा उर लोभ न होय । ५ भूधर सुवचन सांभलो, खपर पक्षकर चौन । समुद्ररेणुका । जो मिल, तोड़े तै गुण कौन ॥ इति ॥
२३९-अठारह नातेकी कथा। मालवदेश उज्जयनीविष राजा विश्वसैन तहां सुदत्त नाम । श्रेष्ठी बसै सोलह कोटिको धनी सो बसन्ततिलका नाम । " वेश्यापर आसक्त होय ताहि अपने घरमें राखी, सो गर्भवती । 9 भई, जब रोग सहित देह भई, तर घरमेंसे काढि दई । बहुरि ।
वसन्ततिलका दुखी होकर अपने घर आई तो उसके गर्भते । * एक पुत्र और एक पुत्री साथही जुगल उत्पन्न होनेके का करण खेदखिन्न हुई तब क्रोधित होकर तिन दोऊ बालकन
को जुदे २ कम्बलमें लपेटि पुत्रीको तो दक्षिण द्वारपर डाली।