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________________ २६ बृहज्जैनवाणीसंग्रह जाभि । साहुसरणं पवजामि । केवलिपण्णत्तो धम्मोसरणं पव्वज्जामि । ओं झौ झौं खाहा ॥ wwwwww wwwww वर्तमान चौबीस तीर्थंकरोंके नाम (कवित्त ) ऋषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति पद्म सुपास प्रभुचंद | पुहपदंत शीतल श्रेयांस प्रभु, वासुपूज्य प्रभु विमल सुछंद || स्वामि अनंत धर्मप्रभु शांति सु, कुंथु अरह जिन मल्लि अनंद | मुनिसुव्रत नमि नेमि पास, वीरेश सकल बंदों सुखकंद ॥ १ ॥ श्री ऋषभः १ अजितः २ संभवः ३ अभिनंदनः ४ सुमतिः ५पद्मप्रभः ६ सुपार्श्वः ७ चंद्रप्रभः ८ पुष्पदंतः ९शीतलः १० श्रेयांसः ११ वासुपूज्यः १२ विमलः १३ अनंतः १४धर्मः १५ शांतिः १६ कुंथुः १७ अरः १८ मल्लिः १९ मुनिसुव्रतः २० नमिः २१ नेमिः २२ पार्श्वनाथः २३ महावीर ः २४ वर्तमानकालसंबंधिचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यो नमोनमः ॥ इति इसप्रकार बोलकर साष्टांग नमस्कार करना चाहिये । नमस्कारके पश्चात् पूजनकेलिये चावल चढ़ाना हो, तो नीचे लिखे पद्य तथा मत्र पढ़कर चढ़ावै । यह भवसमुद्र अपार तोरण, के निमित्त सुविधि ठई। अति दृढ परमपावन जथारथ भक्तिवर नौका सही || उज्ज्वल अखंडित सालि तंदुल, पुंज धरि त्रयगुण जचूं | अरहंत श्रुत सिद्धांत गुरु निरग्रंथ नित पूजा रचूं ||१|| तंदुल सालि सुगंध अति, परम अखंडित बीन । जासों पूजों परमपद, देवशास्त्रगुरु तीन ॥ १ ॥ 个个产边
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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