________________
*
525
*
vvvvvvvv
wwwvvvwwwwww.xxx
४२८ बृहज्जैनवाणीसंग्रह अनुभव-सुख नेवज भरि थाल ॥ मंगल० ॥२॥ दीपकज्ञान
ध्यानकी धूप । निरमल भाव महाफलरूप ।। मंगल० ॥३॥ * सुगुण भविकजन इकरँगलीन । निहचै नवधा भक्ति प्रवीन । । मंगल०॥४|| धुनि उतसाह सु अनहद मान । परम समाधि
निरत परधान ।।मंगल० ।।५।। बाहिन आतमभाव वहावै । + अंतर ह परमातम ध्यावै । मंगल० ॥६॥ साहब सेवकमेद । मिटाय । 'धानत' एकमेक होजाय ।। मंगल० ||७|| * उपयुक्त आरतियोंमेंसे इच्छानुसार एक या दो आरती बोलकर नीचे थे। लिखा श्लोक, दोहा और मंत्र पढ़कर आरतीको मस्तकपर चढ़ावे। ..
२२३-दीप धूप चढानके मंत्रादि। * ध्वस्तोद्यमांधीकृतविश्वविश्वमोहांधकारप्रतिघातदीपात् ।।
दीपैः कनकांचनभाजनस्थैर्जिनेन्द्रसिद्धांतयतीन् यजेऽहम् ॥ - दोहा-स्वपरप्रकाशनज्योति अति, दीपक तमकर हीन।
जासों पूजौं परमपद, देवशास्त्रगुरु तीन ॥॥ *ओं ही मोहतिमिरविनाशनाय देवशास्त्रगुरुभ्यो दीपं निवेपामीति स्वाहा । * धूप चढ़ाते समय अथवा धूपकी आशिका लेते समय नीचे लिखा है १ श्लोक दोहा और मन्त्र बोलना चाहिये।
दुष्टाष्टकर्मेन्धनपुष्टज्वालसंधूपने भासुरधूमकेतून् । धूपैर्विधूतान्य सुगधिगंधैर्जिनेन्द्रसिद्धांतयतीन् यजेऽहं ।।
दोहा-अग्निमांहि परिमलदहन, चंदनादि गुणलीन । के जासों पूजौं परमपद देवशास्त्रगुरु तीन ॥२॥ *ओं ह्रीं अष्टकर्मविनाशनाय देवशास्त्रगुरुभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा।।