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१. ४२६ बृहज्जैनवाणीसंग्रह
वचन भविक शिव जाहिं ॥ सो पुद्गलमें तुम गुण नाहिं । * ॥४॥ आतम ज्योति समान बताऊँ । रवि शशि दीपक
मूढ बताऊँ ।।५।। नमत त्रिजगपति शोमा उनकी । तुम सोमा । । तुममें जिनमें जिन गुणकी ॥६॥ मानसिंह महाराजा गावें।। * तुम महिमा तुम ही बन आवै ॥७॥
२१९-निश्चय आरती। इह विधि आरती करौं प्रभु तेरी । अमल अबाधित निज * गुणकेरी ।। टेक ॥ अचल अखंड अतुल अविनाशी । लोका
लोक सकल परकाशी ॥इहविध० ॥१॥ ज्ञानदरससुखबल। * गुणधारी । परमातम अविकल अविकारी ।इहविध० ॥२॥ १. क्रोधआदि रागादि न तेरे । जनम जरामृत कर्म न नेरे ॥
इहविध०॥३॥ अवपु अबंध करणसुखनासी । अभय अना* कुल शिवपदवासी ॥इहविध० ॥४॥ रूप न रेख न भेख न । . कोई । चिन्मूरति प्रभु तुम ही होई ॥इहविध०॥५॥ अलख * अनादि अनत अरोगी । सिद्ध विशुद्ध सुआतमभोगी.॥ । इहविध० ॥६॥ गुन अनंत किम वचन बतावै । दीपचंद । भवि भावन मावै ॥ इहविध० ॥७॥
२२०-आत्माकी आरती। है करौ आरती आतम देवा, गुणपरजाय अनंत अमेवा। *करौं।टेका। जामें सब जग जो जगमाहीं । वसत जगतमें ।
जगसम नाहीं ॥करौं०॥१॥ ब्रह्मा विष्णु महेश्वर ध्यावे । साधु * सकल जिहको गुण गावें ।। करौं ॥२॥ विन जाने जिय। * - ----
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