________________
vvvvvvvvvvwww.
वृहज्जैनवाणीसंग्रह कर्मतै मैं छुटा चाहूं, शिवलहूं जहँ मोह ना ॥ ६॥ मैं साधु* जनको संग चाहूं, प्रीति तिनहीसों करों। मैं पर्वके उपवास
चाहूं, अवर आरंभ परिहरों। इस दुक्ख पंचमकालमाही, कुल शरावक मैं लह्यो। अरु महाव्रत धरिसकों नाही, * निवल तन मैंने गह्यो ॥ ७ ॥ आराधना उत्तम सदा, चाई
सुनो जिनरायजी । तुम कृपानाथ अनाथ 'धानत' दया करना न्याय जी ।। वसुकर्मनाश विकाश ज्ञानप्रकाश मोको * कीजिये । करि सुगतिगमन समाधिमरन सुभक्ति चरनन । दीजिये ॥८॥
१९-दृष्टाष्टकस्तोत्र ( दर्शनार्थ जातेहुये जबसे जिनमंन्दिर दोखने लगे तबसे इसका
पाठ करना प्रारंभ कर दे) ____ दृष्टं जिनेंद्रभवनं भवतापहारी भव्यात्मनां विभवसंभव
भूरिहेतुः । दुग्धाब्धिफेनधवलोज्ज्वलकूटकोटीनद्धध्वजप्रकरराजिविराजमानं ॥१॥ दृष्टं जिनेद्रभवनं भुवनैकलक्ष्मीमिद्धिवर्द्धितमहामुनिसेव्यमानं । विद्याधरामरवधूजनमुक्तदिव्यपुष्पांजलिमकरशोभितभूमिमागं ॥ २॥ दृष्टं जिनेन्द्रभवनं भवनादिवासविख्यातनाकगणिकागणगीयमानं ।। नानामणिप्रचयभासुररश्मिजालव्यालीढनिर्मलविशालगवा* क्षजालं ॥३॥ दृष्टं जिनेंद्रभवनं सुरसिद्धयक्षगंधर्वकिन्नरकरा
पितवेणुवीणा । संगीतमिश्रितनमस्कृतधारनादैरापूरितांबरतिलोरुदिगंतराल॥४॥ दृष्टं जिनेन्द्र भवनं विलसद्विलोलमाला* -- --
-