________________
NAWARAAAAAAAAAAAAAAA
AnnanoranAmA.....-mor...
.
.
* -- -R AM ३३४ . वृहज्जैनवाणीसंग्रह पहुंचे, वंदों शीश नवाई । तिनके पदयुग जजडं भावसों, है हरषि २ चितलाई ॥३॥
ओं ही श्रीसम्मेदशिखिरसिद्धक्षेत्रधवलकूटते सम्भवनाथजिनेन्द्रादि मुनि । । नौकोडाकोडीबहत्तरलाखल्यालीसहजारपांचसौसिद्धपदप्राप्त भ्यः सिद्ध । क्षेत्रेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥३॥
नं०१६ अभिनंदननाथ आनंदकूट । चौपाई-आनंदकूट महासुखदाय । अभिनंदन प्रभु शिव* पुर जाय ।। कोडाकोडि बहत्तर जान । सत्तर कोडि लख
छत्तिस मान ॥ सहस वियालिस शतक जु सात । कहे । जिनागममैं इह भांत ॥ एऋषि कर्म काटि शिव गये। तिनके पदजुग पूजत भये ॥४॥
ओं ह्रीं सम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रे आनंदकूट श्रीअभिनंदनजिनेंद्रादि । मुनि वहत्तरकोडाकोडी सत्तरकोडिछत्तीसलाखन्यालीसहजारसातसौसि*द्धपदप्राप्तभ्यो सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥
नं०१६ सुमतिनाथ अविचल्लूट। अडिल्ल। अविचल चौथो कूट महासुख धामजी । जहः सुमतिजिनेश गये निर्वाणजी ॥ कोडाकोडी एक मुनीश्वर
जानिये ! कोटि चुरासी लाख वृहत्तरि मानिये ॥ सहस * इक्यासी और सातसौ गाइये । कर्म काटि शिवगये तिन्हें । शिर नाइये । सो थानक मैं पूंजू मनवचकायजी । पाप । दर होजाय अचलपद पाय जी ।।
ओं ही श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रअविचल्लूटते सुमतिनायजिनेंद्रादि । मुनि एक कोडाकोड़ी चौरासोकोड़ि वहत्तरलाख इक्यासीहजार सातसौ सिद्धपदप्राप्त भ्यः सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।