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________________ समिति पुल काल बृहज्जैनवाणीरसह जयपुर wwwwwwwwwwwwwwww VAALTH PROPHY *ओं ही श्रीआदिनाजिनेन्द्राय धूपं निर्वपामोलि स्वाहा । सरस पक्क मनोहर पावने । विविध ले फल पूज रचाने। त्रिजगनाथ कृपा अब कीजिये। हमहि मोक्ष महाफल दीजिये। ओं ही श्रीआदिनाजिनेन्द्राय फलं निर्वपामोति स्वाहा। जल फलादि समस्त मिलायकैं। जजतहूं पद मंगल गायकैं॥ भगतवत्सल दीनदयालजी। करहु मोहि सुखी लख हालजी॥ ओं ही श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। पंचकल्याणक । * असित दोज अषाढ सुहावनी । गरम मंगलको दिन पावनी ॥ हरि सची पितु मातहिं सेवहीं । जजत हैं हम श्रीजिनदेवही॥ *ओं ही आषाढ़कृष्णद्वितीयादिने गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीआदि० अर्घ ॥ असित चैत सुनौरि सुहाइयो ।जन्म मंगल तादिन पाइयो। * हरि महागिरिमै जजियो तबै । हम जजै पदपंकजको अबै ॥ कमों ही चैत्रकृष्णनवमीदिने जन्ममंगलप्राप्ताय श्रोआदिनाथ० अयं ॥ * असित नौमिसु चैत धन्यो सही। तप विशुद्ध सबै समतागही निज सुधारससौं लव लाइयो। हम जजै पद अर्घ चढ़ाइयो। । ओं ह्रीं श्रीचैत्र कृष्णनवमीदिने दीक्षामंगलप्राप्ताय श्रीआदि० अध्यं ॥ असित फागुन ज्ञारसि सोहनो। परम केवल ज्ञान जग्यो भनो॥ हरि समूह जज तित आयकै । हम जजै इत मंगल गायकैं। *ओं ह्रीं फाल्गुनकृष्णकाद्दश्यां ज्ञानमंगलप्राप्ताय श्रीआदि० अध्यं ॥ असित चौदस माघ विराजई। परम मोक्ष लियो जिनराजई॥ हरिसमूह जजे कैलाशजी। हम जजै इत धार हुलासजी॥ ओं ह्रीं माघकृष्णचतुर्दश्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीआदि० अर्घ ॥
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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